ब्लॉग प्रेषक: | आचार्य श्री सत्यस्वरूप साहिब |
पद/पेशा: | संन्यासी |
प्रेषण दिनांक: | 05-08-2023 |
उम्र: | 36 |
पता: | सदगुरू श्री कबीर धाम सेवा समिति, मरूहू, न्यूगल नदी पुल, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश |
मोबाइल नंबर: | +919340336644 |
समाज में अनैतिकता का माहौल
कोई तो पागल है या मैं या दुनिया ?
दामाद सास को लेकर भाग गया, टीचर स्टूडेंट को लेकर भाग गई, समधी समधन ने शादी कर ली, अमीर बूढ़े 60 साल के बाद पोते- पोतियो को खिलाने की जगह सच्चा प्यार ढूंढते नजर आते है। लड़की लड़की से शादी करना चाहती है लड़के लड़के से शादी करना चाहते हैं। कोई कोई लड़की तो कुत्तों से और कुछ पुरुष बकरियों से संबंध बनाने में भी शर्म महसूस नहीं करते। और अब तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से तैयार रोबोटिक लड़के लड़कियों से शादी के भी समाचार मिलने लगे हैं।
किसी गैर मर्द या औरत से अवैध संबंध बनाने के लिए अपने पति या पत्नी और बच्चों को मरवाने के किस्से तो रोज ही मिल रहे है। पहले तलाक के समय पति पत्नी इस बात पर झगड़ा करते थे कि बच्चे किसके पास रहेंगे अब झगड़ा इस बात पर होता है कि बच्चे कौन रखेगा, कोई नहीं रखना चाहता। 30 साल के वैवाहिक जीवन के बाद भी तलाक बढ़ते जा रहे हैं। बूढ़े बूढ़े लंपट सोशल मीडिया पर लड़कियों के मैसेंजर में कपड़े उतारे लार टपकाते बेशर्मी से कलाबाजी खाते नजर आते हैं। लड़कियों की तरह अब लड़के भी वेश्यावृत्ति के धंधे में उतर गए हैं।
एक तरफ घर परिवार के सम्मानित रिश्तो वाले पुरुष अपने निकट संबंध में या रिश्तेदारी में बलात्कार करने से बाज नहीं आते। दूसरी तरफ लड़कियां तो छोड़ो अधेड़ उम्र की महिलाएं भी पूरी बेशर्मी से अधनंगी होकर सोशल मीडिया पर कैबरे करती नजर आती है।
एक तरफ स्कूल कॉलेज में पुरुष अध्यापक अपनी छात्राओं के साथ गलत हरकतें कर रहे हैं तो दूसरी तरफ कुछ लड़कियां नंबर बढ़वाने के लिए या नौकरी पाने से लेकर छोटे-छोटे फायदे उठाने के लिए शरीर परोसने में कोई शर्म महसूस नहीं करती।
60 साल के बूढ़े - बुढ़िया अपने परिवार की इज्जत और अपने जीवनसाथी की भावनाओं को नजर अंदाज करते हुए कॉलेज टाइम के बिछड़े प्रेमी प्रेमिकाओं को ढूंढ कर फिर से दोस्ती करने की कोशिशें कर रहे है और उन्हें इसमें कुछ भी गलत नहीं लगता।
समाज में एक ऐसा तथाकथित आधुनिक वर्ग उभर रहा है जो शादी को एक बेकार का ढकोसला या मनुष्य की स्वतंत्रता में बाधक घोषित करके जंगल राज जैसी व्यवस्था की वकालत कर रहा है।
मुझे यह सब बीमार स्त्री पुरुष संबंधों की सड़ांध नजर आती है और कुछ लोगों को मेरी यह सोच दकियानूसी और संकीर्ण नजर आती है। वह नहीं समझते कि 'अति' हमेशा विनाशकारी होती है। एक सीमा के बाद लोकतंत्र अराजकता में बदल जाता है ,स्वतंत्रता व्याभिचार या भ्रष्टाचार में बदल जाती है, विज्ञान भी विनाशकारी सिद्ध होने लगता है और अहिंसा भी कायरता में बदल जाती है।
शायद मानव मन की यह सब बीमारियां सृष्टि में थोड़ी बहुत हर समय में रहती होगी लेकिन आज की इस तथाकथित आधुनिकता में यह अपने चरम पर पहुंच गई है। शायद यही कलयुग होगा और यही मानव सभ्यता के विनाश का एक कारण बनेगा।
तो क्या इसे स्वीकार कर लेना चाहिए और मौके का फायदा उठाकर आंख बंद कर लेनी चाहिए ? या फिर मजे लेने चाहिए ?
मेरे विचार से शायद अपने विवेक का प्रयोग करके ठीक और गलत की पहचान करनी चाहिए और ठीक के साथ खड़े होने का प्रयास करना चाहिए। शायद एक अच्छे मनुष्य की यही परिभाषा है पहचान है सार्थकता है सकारात्मकता है।
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