मन का मैल

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ब्लॉग प्रेषक: अशोक कुमार सपड़ा हमदर्द
पद/पेशा: डीबीसी कर्मचारी दिल्ली नगर निगम में कार्यरत
प्रेषण दिनांक: 20-08-2023
उम्र: 45
पता: B 11 /1गली नम्बर 8,साउथ अनारकली,कृष्णा नगर दिल्ली 110051
मोबाइल नंबर: 9968237538

मन का मैल

लघुकथा ##आत्मकथा मेरे मन का मैल

बात 2017की है और इकबाल 5 वीं कक्षा में था । उसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी  । दिसम्बर माह की तिमाही की परीक्षा 3 दिन बाद ही थी।सरकारी सकूल की पढाई तो ऐसे थी ,जैसे की बस विद्यार्थी पर कोई अहसान हो फीस थी 5:25 पैसा प्रतिमाह ।इकबाल ने पापा को अपने तकिये के नीचे 100 रूपये रखते देखा जब वो किसी की शादी पर जाने के लिए तैयार हो रहा था  रात को 2 बजे जब वो  शादी से लौटा तो उसने देखा पापा एक साइड को गहरी नींद दवाई लेके सो रहे थे। दवाई  इसलिए की बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया गया तो उस की वजह से एक शोर मचा था कि दंगाई आ रहे है तलवारे लेके !सब डर गए बाजार बंद होने लगे थे ।उस अफवाह की भगदड़ में वो अचानक लगे धक्के से एक हेडपम्प पर गिरे !जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी में गुमचोट आई थी और वहा उनके टीबी भी बन गई थी !तब से वो बिस्तर पर पड गए थे।  इकबाल ने जो सौ रूपये पिताजी के तकिये के नीचे रखे देखे थे !उस रात चुरा लिए ।बालमन था पढ़ाई की वजह से चुराए थे कि पास हो गया तो माफ़ी मांग लूंगा और पापा माफ़ भी कर देंगे।रात को 2 बजे पैसे चुराए सुबह 6 बजे के पास पापा भगवान को प्यारे हो गये। इकबाल को माफ़ी माँगने का मौका भी नही मिला । पितृ ऋण ऐसा ले बैठा था कि उसेबस गुस्सा आ रहा था अपने आप पर । क्यू अपने मन को मैला किया, क्यों चोरी की और नतीजा इकबाल अपनी क्लास में फेल भी हुआ। ऊपर वाले ने उसके किये की सजा दे दी थी । वह सोच रहा था कि गंगा में नहाकर पाप तो धोये जा सकते है पर मन का मैल कहा धोए ? कोई मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा ऐसा नहीं जो इस मन के मैल को धो सके

अशोक कुमार सपड़ा हमदर्द

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