ब्लॉग प्रेषक: | आचार्य श्री सत्यस्वरूप साहिब |
पद/पेशा: | आध्यात्मिक रहस्य की खोज |
प्रेषण दिनांक: | 13-09-2023 |
उम्र: | 36 |
पता: | कबीर आश्रम हिमाचल |
मोबाइल नंबर: | +919340336644 |
सत्य श्री सत्यस्वरूप महाराज जी के अनमोल वचन।
तुम जब प्रेम में होते हो,प्यार में होते हो,भक्ति में होते हो,श्रध्दा और समर्पण में होते हो तो फूल चुनते हो कांटे क्यों नही चुनते हो।इसका अभिप्राय कभी समझने की कोशिश किया है।जब तुम प्रेम में होते हो तो तेरे रोम-रोम में दिव्यंतम ऊर्जा का संवर्धन होने होने लगता है,हृदय जीवन रूपी वृक्ष का फूल है,जहां महाकरूणा,महामैत्री, महामुदिता, महासमता के सुगन्ध अपने आप उठने लगते हैं।जहां तुम्हारे अन्दर प्रसन्नता रूपि हल्कापन,सौन्दर्य रुपि अपनापन,भावनात्मक रूपि खुशबूदार जीवन का रहस्यपूर्ण अनुभव प्रकट होता है।स्त्री हो,गुरू हो या परमात्मा अस्तित्व का परम शुध्दतम ऊर्जा का केन्द्र हैं,इन्हें ऐसे ही स्वीकार करो तो तेरे जीवन के समस्त संकट अवश्य ही दूर होगें अलग से पूजा प्रार्थना की आवश्यकता ही कहां रह जाती है।
जब तुम किसी स्त्री से प्रेम करते हो तो तुम किसी की जीवन बगिया से फूल तोड़ते हो,और यदि जब कोई स्त्री तुम से प्यार करती है तो एक सुन्दर बगिया में सुन्दर फूलों का बीज लगाती है,जहां जीवन रूपि बगिया गुलजार होती है।और तुम अपने मान,सम्मान और अभिमान में पड कर वासना का खेल- खेलने लगते हो तो मानवीय अस्तित्व को संकट में डालने का काम करते हो,और समस्त ब्रह्मांड में ऐसी ऊर्जा का आविष्कार करते हो जहां तुम को अनन्त काल तक संकट का सामना करना पडता है।
तुम प्रेम की परिभाषा करते हो,इससे सिध्द होता है कि तुम अहंकार को सिध्द करने की कोशिश कर रहे हो,जो लोग भी प्रेम की परिभाषा करते हैं,उन्हे तुम महाअहंकारी पाओगे,प्रेम को परिभाषित नही किया जा सकता है,प्रेम तो दरिया है जहां डूब कर तेरी प्यास बुझती है तेरी तपन मिटती है,तुम को कोमलता,और नूतन जिन्दगी का एहसास होता है।इसकी परिभाषा कैसे बता सकते हो किसी को ऐसी मूढ़तापूर्ण कार्य न करो,जीवन रसहीन नही है,प्रेम का रस घोलो जीवन में,जीवन रंगहीन नही है,इसमें कर्तव्य और निष्ठा का रंग भरो,एक ऐसी दुनिया बना सकते हो जहां स्वर्ग की संकल्पना साकार कर सकते हो।जीवन को बुझे दीपक की तरह न जियों, इसमें आदर्श व व्यक्तित्व का प्रकाश भरो,तभी जीवन का सही अर्थ समझ सकोगे।
वासना की निन्दा मत करो,जैसा की समस्त धार्मिक और आध्यात्मिक जगत दिन -रात वासना की निन्दा और गाली में लगा हुआ है।ऐसे हठधर्मियों को चाहिए कि वासना को समझे और वासना से अमृत निकालने का कार्य करें,वासना ही अस्तित्व का निर्माण करती है,और वासना ही अस्तित्व का विनाश भी करती वासना कल्याणी भी है,वासना कालरात्रि भी है।वासना को कीचड़ कहने वाले,अमृत से भी चूक जाते हैं,उनका सम्पूर्ण जीवन वासना के संघर्ष में लगा रहता हैं,ऐसे लोग अमृत की एक झलक भी पाने में असमर्थ होते हैं,वासना ही अमृत का पहली प्राथमिकता है,वासना में आत्मज्ञान रूपी अमृत नही निकाल सके तो तुम सिर्फ धर्म और आध्यात्म का ढोंग कर रहे हो।
तुम जब आत्यंतिक प्रेम में डूबते हो,तो दुनियाभर के शोरगुल स्वतः विलीन हो जाते हैं।तेरे अन्तर्नाद से एक दिव्यंतम ऊर्जा का उद्गम होता है,उसी को अनाहद नाद कहते हैं,वही नाद समस्त ब्रह्मांड में निरंतर गुंज रहा है।उसे तुम कोई नाम देने की भूल मत करो वह अनन्त है,अनाम है शुन्य का भी महा शुन्य है,ईश्वर का भी ईश्वर है।आदि अन्त से उसका कोई संबंध नही है,मन,चित्त, बुद्धि अहंकार के कारण तुम संज्ञा बनाते हो।वह शाश्वत सत्य अस्तित्व का सम्पूर्ण ज्ञान कोई भी नही कर सका है,आध्यात्मिक जगत के महान से महान योगी तपस्वी संत जो भी किया है आंशिक ज्ञान ही प्राप्त कर सका है,इसलिए उपनिषद, वेद, गीता, पुराण सबके सब मूक हैं,केवल नेति नेति ही कह सके, उस अनन्त का सम्पूर्ण ज्ञान सम्पूर्ण ब्रह्मांड में कोई महान अवतारी नहीं कर सका है।
सत्यस्वरूप साहिब
मरूहूं, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
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