| ब्लॉग प्रेषक: | आचार्य श्री सत्यस्वरूप साहिब |
| पद/पेशा: | आध्यात्मिक रहस्य की खोज |
| प्रेषण दिनांक: | 15-09-2023 |
| उम्र: | 36 |
| पता: | कबीर वर्ल्ड ट्रस्ट भोपाल मध्य प्रदेश |
| मोबाइल नंबर: | +919340336644 |
आचार्य श्री सत्यस्वरूप साहिब के चिंतन
प्रेम और आनंद में गिरे हुए आसुओं से पवित्र इस धरा पर कुछ भी नही है, प्रेम से उठे अन्तर्नाद से हृदय आविर्भूत हो कर अस्तित्व की निर्मलतम धारा आंखों से मुखरित होती है,यह अस्तित्व की भावनाओ की गंगा धारा है,जो जीवन को परम विशुद्ध निर्मल व पवित्र बनाती है।
!!@सत्यस्वरूप साहिब
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अरे सुनो मिट्टी के पुतलों जिन्दगी के रंगों में मत उलझों, यह चार दिन की रंगीन, हसीन दुनिया खाक हो जायेगी।तुम उस शाश्वत सत्य के रंग को पहचानों और उसी रंग में अपने आप को शुद्ध शाश्वतता के रूप को अपना लो समस्त दुख द्वंद्व सदा केलिए समाप्त कर लो।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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कर्म एक खेल है और संसार खेल का मैदान, जो हम सभी प्राणी खेल को खेल रहे हैं।हमें बहुत दूर जाना है,इसलिए हमें इस मार्ग पर कुछ मनोरंजन करवाया जा रहा है।हम धर्म, राजनीति,परिवार, पैसा, प्रतिष्ठा का खेल रहे हैं।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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आत्म साक्षात्कार ही आध्यात्म का अन्तिम सत्य नही है।आत्म साक्षात्कार कर लेना आध्यात्मिकता की पहली प्रवेशिका है,जहां समान्य मानव मौत को जीवन का अन्तिम सत्य मान लेते हैं,वैसे ही असमान्य मानव केलिए आत्मा और ईश्वर का साक्षात्कार कर लेना आध्यात्मिकता का अन्तिम सत्य मान लेते हैं।यह आध्यात्मिक जगत का असमान्य भ्रम है चैतन्य शक्ति जो शाश्वत,सत्य व सनातन है,उस अवस्था पर जाने केलिए आत्मा और ईश्वर के भ्रम को भी तोड़कर कैवल्य शून्य में स्थितप्रज्ञ होना होगा।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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कृष्ण और कबीर,बुद्ध और महावीर,क्राइस्ट और मुहम्मद,नानक या जरथ्रुस,लाओत्से या मौसेस,इनको तुम क्या समझते हो यह सभी महान आत्माओं ने धर्म की सजावट करने केलिए अपना सम्पूर्ण जीवन लगाया,अरे मूढों उन चैतन्य अस्तित्व ने लोक कल्याण के कार्य में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिये, जैसा की तुम सभी धर्म के ठेकेदार लोग अपनी दुकान की सजावट लगा कर मानवता को खंडित और रक्त रंजित कर रहे हो,उन महान उदार चेतनायुक्त अस्तित्व ने मानव को मानवता का रहस्य समझाया और तुम झगड रहें हो धर्म के नाम पर मानवता को लहूलुहान कर रहे हो,अरे धर्म के आतातायियों तुम इन्सान के दर्द को महसूस करो,यहीं से धर्म पल्लवित और पुष्पित होगा।जिहाद और जियारत,पूजा और पाठ मानव अस्तित्व की रक्षा से शुरू करो,न की मंदिर ,मस्जिद की दीवार खड़ी करने केलिए ।!!@सत्यस्वरूप साहिब~
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शब्द शव पर छोटी इ की मात्रा लगाने के बाद शिव शब्द का निर्माण हुआ है। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। शिव अपने इस स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते हैं। इसी स्वरूप द्वारा परमात्मा ने अपने ओज व उष्णता की शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित कर रखा है, सम्पूर्ण ब्रह्मांड को एकत्रित कर रखा है । परमात्मा का यह स्वरूप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है क्योंकि पूर्ण सृष्टि का आधार इसी स्वरूप पर टिका हुआ है।वही योग का प्रणेता हैं जो मोक्ष का मार्ग है।
!!@सत्यस्वरूप साहिब
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इस दुनिया के लोगो को कुछ भी समझ नही है,जो लोग कहते हैं कि इस संसार को ईश्वर ने बनाया है और सृष्टि को ईश्वर ही चला रहा है,वे कुछ भी नही जानते इस विषय में,या जो लोग यह कहते हैं कि इस सृष्टि को न ईश्वर बनाया है,न चला रहा है सब मिथ्या है।यह बौद्धिक बार्तालाप केवल मानसिक बिमारी है।सच तो यह है कि सृष्टि अपने काल चक्र के हिसाब से स्वयं ही अनादि अनन्तकाल से चल रही है,इसे न किसी ने बनाया न मिटा सकता है।यह स्वयंभू है।इसमे सर्जन,और विसर्जन स्वभाविक है।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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तुम जब प्रेम में होते हो,प्यार में होते हो,भक्ति में होते हो,श्रध्दा और समर्पण में होते हो तो फूल चुनते हो कांटे क्यों नही चुनते हो।इसका अभिप्राय कभी समझने की कोशिश किया है।जब तुम प्रेम में होते हो तो तेरे रोम-रोम में दिव्यंतम ऊर्जा का संवर्धन होने होने लगता है,हृदय जीवन रूपी वृक्ष का फूल है,जहां महाकरूणा,महामैत्री, महामुदिता, महासमता के सुगन्ध अपने आप उठने लगते हैं।जहां तुम्हारे अन्दर प्रसन्नता रूपि हल्कापन,सौन्दर्य रुपि अपनापन,भावनात्मक रूपि खुशबूदार जीवन का रहस्यपूर्ण अनुभव प्रकट होता है।स्त्री हो,गुरू हो या परमात्मा अस्तित्व का परम शुध्दतम ऊर्जा का केन्द्र हैं,इन्हें ऐसे ही स्वीकार करो तो तेरे जीवन के समस्त संकट अवश्य ही दूर होगें अलग से पूजा प्रार्थना की आवश्यकता ही कहां रह जाती है।
!!@सत्यस्वरूप साहिब
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तुम प्रेम की परिभाषा करते हो,इससे सिध्द होता है कि तुम अहंकार को सिध्द करने की कोशिश कर रहे हो,जो लोग भी प्रेम की परिभाषा करते हैं,उन्हे तुम महाअहंकारी पाओगे,प्रेम को परिभाषित नही किया जा सकता है,प्रेम तो दरिया है जहां डूब कर तेरी प्यास बुझती है तेरी तपन मिटती है,तुम को कोमलता,और नूतन जिन्दगी का एहसास होता है।इसकी परिभाषा कैसे बता सकते हो किसी को ऐसी मूढ़तापूर्ण कार्य न करो,जीवन रसहीन नही है,प्रेम का रस घोलो जीवन में,जीवन रंगहीन नही है,इसमें कर्तव्य और निष्ठा का रंग भरो,एक ऐसी दुनिया बना सकते हो जहां स्वर्ग की संकल्पना साकार कर सकते हो।जीवन को बुझे दीपक की तरह न जियों, इसमें आदर्श व व्यक्तित्व का प्रकाश भरो,तभी जीवन का सही अर्थ समझ सकोगे।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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वासना की निन्दा मत करो,जैसा की समस्त धार्मिक और आध्यात्मिक जगत दिन -रात वासना की निन्दा और गाली में लगा हुआ है।ऐसे हठधर्मियों को चाहिए कि वासना को समझे और वासना से अमृत निकालने का कार्य करें,वासना ही अस्तित्व का निर्माण करती है,और वासना ही अस्तित्व का विनाश भी करती वासना कल्याणी भी है,वासना कालरात्रि भी है।वासना को कीचड़ कहने वाले,अमृत से भी चूक जाते हैं,उनका सम्पूर्ण जीवन वासना के संघर्ष में लगा रहता हैं,ऐसे लोग अमृत की एक झलक भी पाने में असमर्थ होते हैं,वासना ही अमृत का पहली प्राथमिकता है,वासना में आत्मज्ञान रूपी अमृत नही निकाल सके तो तुम सिर्फ धर्म और आध्यात्म का ढोंग कर रहे हो।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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कर्म एक खेल है और संसार खेल का मैदान, जो हम सभी प्राणी खेल को खेल रहे हैं।हमें बहुत दूर जाना है,इसलिए हमें इस मार्ग पर कुछ मनोरंजन करवाया जा रहा है।हम धर्म, राजनीति,परिवार, पैसा, प्रतिष्ठा का खेल रहे हैं।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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प्रेम और आनंद में गिरे हुए आसुओं से पवित्र इस धरा पर कुछ भी नही है,प्रेम से उठे अन्तर्नाद से हृदय आविर्भूत हो कर अस्तित्व की निर्मलतम धारा आंखों से मुखरित होती है,यह अस्तित्व की भावनाओ की गंगा धारा है,जो जीवन को परम विशुद्ध निर्मल व पवित्र बनाती है।
!!@सत्यस्वरूप साहिब
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अरे सुनो मिट्टी के पुतलों जिन्दगी के रंगों में मत उलझों, यह चार दिन की रंगीन, हसीन दुनिया खाक हो जायेगी।तुम उस शाश्वत सत्य के रंग को पहचानों और उसी रंग में अपने आप को शुद्ध शाश्वतता के रूप को अपना लो समस्त दुख द्वंद्व सदा केलिए समाप्त कर लो।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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!!@सत्यस्वरूप साहिब
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आत्म साक्षात्कार ही आध्यात्म का अन्तिम सत्य नही है।आत्म साक्षात्कार कर लेना आध्यात्मिकता की पहली प्रवेशिका है,जहां समान्य मानव मौत को जीवन का अन्तिम सत्य मान लेते हैं,वैसे ही असमान्य मानव केलिए आत्मा और ईश्वर का साक्षात्कार कर लेना आध्यात्मिकता का अन्तिम सत्य मान लेते हैं।यह आध्यात्मिक जगत का असमान्य भ्रम है चैतन्य शक्ति जो शाश्वत,सत्य व सनातन है,उस अवस्था पर जाने केलिए आत्मा और ईश्वर के भ्रम को भी तोड़कर कैवल्य शून्य में स्थितप्रज्ञ होना होगा।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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तुम जब प्रेम में होते हो,प्यार में होते हो,भक्ति में होते हो,श्रध्दा और समर्पण में होते हो तो फूल चुनते हो कांटे क्यों नही चुनते हो।इसका अभिप्राय कभी समझने की कोशिश किया है।जब तुम प्रेम में होते हो तो तेरे रोम-रोम में दिव्यंतम ऊर्जा का संवर्धन होने होने लगता है,हृदय जीवन रूपी वृक्ष का फूल है,जहां महाकरूणा,महामैत्री, महामुदिता, महासमता के सुगन्ध अपने आप उठने लगते हैं।जहां तुम्हारे अन्दर प्रसन्नता रूपि हल्कापन,सौन्दर्य रुपि अपनापन,भावनात्मक रूपि खुशबूदार जीवन का रहस्यपूर्ण अनुभव प्रकट होता है।स्त्री हो,गुरू हो या परमात्मा अस्तित्व का परम शुध्दतम ऊर्जा का केन्द्र हैं,इन्हें ऐसे ही स्वीकार करो तो तेरे जीवन के समस्त संकट अवश्य ही दूर होगें अलग से पूजा प्रार्थना की आवश्यकता ही कहां रह जाती है।
!!@सत्यस्वरूप साहिब
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इस दुनिया के लोगो को कुछ भी समझ नही है,जो लोग कहते हैं कि इस संसार को ईश्वर ने बनाया है और सृष्टि को ईश्वर ही चला रहा है,वे कुछ भी नही जानते इस विषय में,या जो लोग यह कहते हैं कि इस सृष्टि को न ईश्वर बनाया है,न चला रहा है सब मिथ्या है।यह बौद्धिक बार्तालाप केवल मानसिक बिमारी है।सच तो यह है कि सृष्टि अपने काल चक्र के हिसाब से स्वयं ही अनादि अनन्तकाल से चल रही है,इसे न किसी ने बनाया न मिटा सकता है।यह स्वयंभू है।इसमे सर्जन,और विसर्जन स्वभाविक है।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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अतृप्त मन ही सबसे बडा भिखारी है,तुम अतृप्ति के कारण इतना दुखी हो,किसी और के कारण नही,तुम प्रेम के कारण अतृप्त हो,धन,वैभव, पद,प्रतिष्ठा,मान सम्मान इन सभी के कारण अतृप्त जीवन जी रहे हो,इसलिए तुम दुखी हो,यह दुर्भाग्यपूर्ण जीवन है,क्यों कि यह कोई भौगोलिक दुख नही है,तुम्हारी मानसिक समस्या है,इसको तुम खुद ही दूर कर सकते हो,जो तुम अपनी महत्वाकांक्षा के कारण अतृप्त जीवन जी रहे थे, उसी जीवन को भावनात्मक ढंग से भावपूर्ण हो कर जियों जीवन की सारी दरिद्रता और भिखारीपन दूर हो जायेगा।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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: वासना की निन्दा मत करो,जैसा की समस्त धार्मिक और आध्यात्मिक जगत दिन -रात वासना की निन्दा और गाली में लगा हुआ है।ऐसे हठधर्मियों को चाहिए कि वासना को समझे और वासना से अमृत निकालने का कार्य करें,वासना ही अस्तित्व का निर्माण करती है,और वासना ही अस्तित्व का विनाश भी करती वासना कल्याणी भी है,वासना कालरात्रि भी है।वासना को कीचड़ कहने वाले,अमृत से भी चूक जाते हैं,उनका सम्पूर्ण जीवन वासना के संघर्ष में लगा रहता हैं,ऐसे लोग अमृत की एक झलक भी पाने में असमर्थ होते हैं,वासना ही अमृत का पहली प्राथमिकता है,वासना में आत्मज्ञान रूपी अमृत नही निकाल सके तो तुम सिर्फ धर्म और आध्यात्म का ढोंग कर रहे हो।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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तुम प्रेम की परिभाषा करते हो,इससे सिध्द होता है कि तुम अहंकार को सिध्द करने की कोशिश कर रहे हो,जो लोग भी प्रेम की परिभाषा करते हैं,उन्हे तुम महाअहंकारी पाओगे,प्रेम को परिभाषित नही किया जा सकता है,प्रेम तो दरिया है जहां डूब कर तेरी प्यास बुझती है तेरी तपन मिटती है,तुम को कोमलता,और नूतन जिन्दगी का एहसास होता है।इसकी परिभाषा कैसे बता सकते हो किसी को ऐसी मूढ़तापूर्ण कार्य न करो,जीवन रसहीन नही है,प्रेम का रस घोलो जीवन में,जीवन रंगहीन नही है,इसमें कर्तव्य और निष्ठा का रंग भरो,एक ऐसी दुनिया बना सकते हो जहां स्वर्ग की संकल्पना साकार कर सकते हो।जीवन को बुझे दीपक की तरह न जियों, इसमें आदर्श व व्यक्तित्व का प्रकाश भरो,तभी जीवन का सही अर्थ समझ सकोगे।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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जब तुम किसी स्त्री से प्रेम करते हो तो तुम किसी की जीवन बगिया से फूल तोड़ते हो,और यदि जब कोई स्त्री तुम से प्यार करती है तो एक सुन्दर बगिया में सुन्दर फूलों का बीज लगाती है,जहां जीवन रूपि बगिया गुलजार होती है।और तुम अपने मान,सम्मान और अभिमान में पड कर वासना का खेल- खेलने लगते हो तो मानवीय अस्तित्व को संकट में डालने का काम करते हो,और समस्त ब्रह्मांड में ऐसी ऊर्जा का आविष्कार करते हो जहां तुम को अनन्त काल तक संकट का सामना करना पडता है।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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एक कलाकार पत्थर को तराश कर मूर्तियां बनाता है,लेकिन उन मूर्तियों में कलाकार की जीवंत भावना होती है,जो खूबसूरती और सौंदर्य की सरिता में झिलमिलाती रूप और यौवन की वासना प्रतिलक्षित होती है,तुम अपने जीवन्तता का प्रमाण न देकर,निरंकुश,निकृष्ट जीवन जीने केलिए आमदा हुए हो,तुम भला सोचो की तुम पत्थर से भी गये गुजरे जिन्दगी क्यों जी रहे हो।@!!सत्यस्वरूप साहिब
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: तुम जब आत्यंतिक प्रेम में डूबते हो,तो दुनियाभर के शोरगुल स्वतः विलीन हो जाते हैं।तेरे अन्तर्नाद से एक दिव्यंतम ऊर्जा का उद्गम होता है,उसी को अनाहद नाद कहते हैं,वही नाद समस्त ब्रह्मांड में निरंतर गुंज रहा है।उसे तुम कोई नाम देने की भूल मत करो वह अनन्त है,अनाम है शुन्य का भी महा शुन्य है,ईश्वर का भी ईश्वर है।आदि अन्त से उसका कोई संबंध नही है,मन,चित्त, बुद्धि अहंकार के कारण तुम संज्ञा बनाते हो।वह शाश्वत सत्य अस्तित्व का सम्पूर्ण ज्ञान कोई भी नही कर सका है,आध्यात्मिक जगत के महान से महान योगी तपस्वी संत जो भी किया है आंशिक ज्ञान ही प्राप्त कर सका है,इसलिए उपनिषद, वेद, गीता, पुराण सबके सब मूक हैं,केवल नेति नेति ही कह सके, उस अनन्त का सम्पूर्ण ज्ञान सम्पूर्ण ब्रह्मांड में कोई महान अवतारी नहीं कर सका है।
!!@सत्यस्वरूप साहिब
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मानव प्रेम का महान कलाकार है।उसने जीवन में न जाने कितनी ही खूबसूरत कारीगरी करके सुन्दर प्रतिमायें निर्मित की लेकिन,आशा, कामना,इच्छा,मोह,माया,से ग्रसित हो कर मन में विकार पैदा करके खुद की ही सुन्दर छवि की मूर्ति तोड़कर दीनहीन बन कर रोता है।यह मानव अस्तित्व ब्रह्मांड की अनन्त मंगलकारी संभावनाए है,लेकिन जीवन के रहस्य से अछूता मानव, दिन प्रतिदिन दिल की सुन्दर, सुकोमल प्रेम प्रतिमा को तोड़ने में थोडा भी विलम्ब नही करता है,यही से उसके दुख चक्र की शुरुआत होती है।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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प्रेम का बंधन परम मुक्ति है,लेकिन प्रेम का मार्ग अत्यंत दुर्गम घाटी की तरह है,वहां पहुंच पाना मुश्किल है, लेकिन बहुत कम लोग हैं, जो प्रेम के रस में डूब पाते हैं,तुम प्रेम को केवल चखते हो,डूबने का दुस्साहस नहीं करते हो,जिस दिन यथार्थ रूप से प्रेम में डूबना शुरू करोगे समस्त ब्रह्मांड की शक्तियां बाहें फैलाये आलिंगन के लिए तत्पर हो जायेंगी।वसुन्धरा,नदिया, झरने, पेड- पहाड, सूर्य ,चन्द्र, नक्षत्र, तारे ये सुमधुर वादियां खूबसूरत सुमधुर कंठ से अनन्त -अनन्त काल से तेरे लिए प्रेम के गीत सुना रहे हैं।तुम या तो बहरे हो,या तो दुनिया के शोरगुल में खो गये हो या फिर अपने कान में अंगुली डाल कर बंद किये हो,समस्त ब्रह्मांड अनंत काल से प्रेम का संगीत गा रहा है,आनंद के गीत गा रहा है,तुम को रोने से कब फुर्सत मिलेगी।अभी इस जीवन में सचेत हो जाओ।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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जिस प्रेम ने नव जीवन को प्रेरणा दी, जिसकी सांसे,मन,प्राण सब कुछ शीतल,धवल,निर्मल,आनंद की निरझर,सुगंध की सरिता सदृश्य जीवन में रस प्रवाहित की हो उस प्रेम को चुकाना दुनिया के किसी शक्ति में नहीं है।क्योंकि प्रेम ही परम शक्ति है।तुम जीवन के अनन्त-अनन्त कालचक्र में प्रेम से परिचित हो लेकिन प्रेम को जीने में बहुत कृपण हो,तुम धनवान बन सकते हो लेकिन धन से नही,सच्चे अर्थ में धनवान समृद्धिशाली वही है जिसके हृदय में प्रेम की उज्जवल रसधार बह रही हो,जिसका जीवन ही प्रेम का फूल बन कर रोम-रोम खिल उठा हो,और अपने जीवन में समस्त ब्रह्मांड को सुगंध लुटा रहा हो,प्रेम की कसौटी सदाचार,शील,मर्याद और नैतिकता के आदर्श की खूबसूरत प्रतिमा प्रस्थापित किया हो।जीवन में प्रेम को सही अर्थ दो तभी जीवन में यथार्थ सुख की अनुभूति कर सकोगे।@!!सत्यस्वरूप साहिब
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न प्रेम पाप है,न प्रेम करना पाप है,प्रेम करके प्रेम को छिपाना पाप है,क्यों कि प्रेम छिपाने पर व्यक्ति के अन्दर अपराध बोध का ख्याल आने लगता है,यही जीवन को जहर की तरह विषाक्त कर देता है,और खुशहाल जिन्दगी को भयंकर रूप से रुग्ण करके नष्ट कर देता है।जीवन में प्रेम ही ऐसा महाऔषध है, जो मृत्यु केलिए संजीवनी है,दुर्बल केलिए महाशक्ति है।इसलिए जीवन में प्रेम रूपि विलक्षण क्षमता को अवश्य पहचानना चाहिए।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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प्रेम और आत्मा दोनो अमर है,इसे मिटाया नही जा सकता यह मिट भी नहीं सकता है,यह विलीन हो सकता है,लेकिन इसके विलय की प्रक्रिया बहुत ही अलौकिक और अद्भुत है,जब जल में रंग घुलता है,तो यह मिटते नही हैं,विलीन हो कर अपना नया आकार लेते हैं,प्रेम और आत्मा मिल कर आनंद का स्वरूप धारण कर लेते हैं।जहां तेरे जीवन के समस्त तपन शांत हो जाता है।तुम जीवन के सूखे, रेगिस्तान की मरूस्थल में न जाने प्रेम की एक बूंद केलिए चकोर की तरह आकाश को देखते हुए मर मिटते हो,लेकिन प्रेम से तृप्त नहीं हो पाते हो,क्योंकि तुम प्रेम बाहर खोज रहे हो,हदयाकाश में निरंतर प्रेम के झरने वह रहें हैं।वही जाओ जन्म-जन्म की प्यास बुझ जायेगी।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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प्रेम में मर कर भी अमर हुआ जा सकता है,लोग तो जी कर भी प्रेम के हकीकत से अनजान हैं,इस दुनिया को खूबसूरत बनाने केलिए,प्रेम के सिवाय किसी चीज की जरूरत नहीं है।इस संसार में जितने धर्म और सिध्दांत बनेगें प्रेम की हरिभरी बगियां को उजाड फेंकने का काम करेंगे।बंदगी और प्रार्थना केवल जीवन की औपचारिकता है,हकीकत में तो पूजा-पाठ और इबादत दिल को प्रेम से रोशन करने से शुरू होता है।मन रूपि मंदिर,और दिल दरगाह में प्रेम का फूल अर्पित करो,और इश्क की रोशनी जला कर सम्पूर्ण ब्रह्मांड को रोशन कर दो,यही प्रेम की परम पराकाष्ठा है!!सत्यस्वरूप साहिब
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मानव जीवन अस्तित्व का सर्वश्रेष्ठ वरदान है,इस जीवन को शिद्दत से जीना चाहिए,समाज के रीति-रिवाज मान्यतायें जीवन केलिए जंजीर और बेडियां है,जब तक इसे तोड़ोगे नही तो उन्मुक्त जीवन जीना सम्भव नहीं होगा।इस संसार में प्रेम भरा जीवन बहुत बड़ी उपलब्धि है।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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तुम जीवंत फूलों को मिटा कर पत्थरों,की पूजा व इबादत करते हो,कभी उन फूलों की दिव्यत्म सौन्दर्य और उनके निर्दोषता पर तरश नही खाते हो।कभी उन फूलों की आँखों में आंखे डाल कर देखो तेरा खुदा और भगवान भी उसी में समाया हुआ है।तुम एक खुदा व ईश्वर को मिटा कर दूसरे पर चढा रहे हो,यह तेरी आस्था का सवाल नही है,यह तो तेरे अंहकार का समाधान है।तेरी पूजा व इबादत तब स्वीकार होगी जब अपने मन को ही सुमन करके अर्पित करों,यथार्थ निर्णायक प्रार्थना का यही मांग है।लेकिन तुम्हारी झूठी प्रार्थना से जीवन का कोई भी हल नही होने वाला है।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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तेरी आत्मा ही सत्य,शाश्वत और सनातन है,यह आत्मा न जन्म लेने वाली है,न मृत्यु को प्राप्त होती है,जो ऐसा जान कर शोक का त्याग कर देता है।वही सुख और दुख से मुक्त हो कर आत्म साक्षात्कार कर सकता है,वाकी लोग भ्रम धोखा, मानन्दी के कूप में गिर कर चीर काल तक दुख ही भोगते हैं।!!@सत्यस्वरूप साहिब
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आत्मा अक्षय,शुद्ध, बुद्ध,निर्विकार,निर्विचार और निर्मल है।संबंधों में पड़ कर मान,सम्मान और अपमान में पड कर अकर्म रूप कर्म करते हुए जीवन को नष्ट-भ्रष्ट करने लगता है।और मनोवृत्तियों को बाहरी विषयों में विचरण करने की स्वतंत्रता दे देता है।फिर अविद्या रूप घोर आरंण्य में अनन्त काल तक भटकता रहता है।@!!सत्यस्वरूप साहिब
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तुम प्रेम केलिए प्यासे हो लेकिन हृदय को झील बनने नहीं दे रहे हो,तुम अपने हृदय में मान, सम्मान,अभिमान के पर्वतमालाओं की श्रृंखला खड़ी कर रखे हो,जब तक तुम इनको मिटा कर हृदय को झील बनाने को तैयार नही होओगे तुम्हारी प्रेम की प्यास नही बुझ सकेगी। तुम प्रेम प्यास में जन्म जन्मांतर तक तड़पते रहोगे,लेकिन सच्चे प्रेम की एक बूंद नसीब नहीं हो सकेगी।@!!सत्यस्वरूप साहिब
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तुम ही ईश्वर, खुदा,गाॅड,भगवान,परमात्मा को खोज रहे हो,तुमने कभी सोचा कि ईश्वर खुदा गाड, परमात्मा तुमको क्यों नहीं खोजता,इसका मतलब यही है कि तुमको उसकी जरूरत है,और उसको तेरी जरूरत नही है।जब तेरी जरूरत होती है,तभी खोजते हो वरना तुम सदैव उसकी तरफ पीठ करके खड़े रहते हो,तुम इन्द्रिय सुखों के भोगों के आमोद-प्रमोद में इतनी डूब चुके हों कि भला उसकी याद कैसे आ सकेगी। लेकिन जब तुमको उन भोग-विषयों से चोट लगती है,जब तुम इन्द्रिय सुखों के कारण हृदय में जख्म पाते हो तो वासना व कामना की नींद टूटती है।फिर तुम ईश्वर खुदा को पुकारते हो,हे मानव तुम कितना स्वार्थी और मतलबी हो,तेरी श्रध्दा, भक्ति, सेवा समर्पण और निष्ठा सब स्वार्थ की दहलीज से निर्मित है।यही कारण है कि ईश्वर खुदा,गाॅड परमात्मा तुम को नहीं तलाश रहा है!!@सत्यस्वरूप साहिब
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