अश्लील गाने और फिल्मों का होड़ समाज के लिए कोढ़।

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ब्लॉग प्रेषक: डॉ. अभिषेक कुमार
पद/पेशा: मुख्य प्रबंध निदेशक DPK मानवता अनुसंधान केंद्र
प्रेषण दिनांक: 06-11-2023
उम्र: 34
पता: ठेकमा, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: +919472351693

अश्लील गाने और फिल्मों का होड़ समाज के लिए कोढ़।

अश्लील गाने और फिल्म पर मेरे विचार

©डॉ. अभिषेक कुमार

       अश्लील गाने और फिल्मों के गीतकार, कलाकारों पर सरकार को त्वरित लगाम लगाना चाहिए न की इनके अनुयायियों की संख्या बहुतायत के दृष्टिगत इन्हे विधायक सांसद की टिकट देना चाहिए। इनकी अश्लील हरकत से दूरगामी परिणाम बड़ा ही भयंकर है जो अभी अपने आस पास के परिवेश में दृष्टिगोचर है। अश्लीलता का प्रभाव इस पीढ़ी को तो प्रभावित करेगा ही साथ ही साथ आने वाले पीढ़ी को भी बर्बाद कर देगा। ऐसे गंदे गायकों फिल्म निर्माताओं, कलाकारों पर सरकार को सख्ती से निपटना चाहिए। सामाजिक मनोवृति में कुसंस्कार को विकसित करने के जुर्म में उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मुकर्रर करने का प्रावधान करना चाहिए, कठोर कानून बनाने चाहिए। ऐसे अमर्यादित कुसंस्कारित कलाकार, निर्माताओं पूर्णतः बेलगाम है न इन पर सेंसर बोर्ड का कोई नियंत्रण है और न ही अभी तक कोई सरकार ठोस कदम उठाई है। जो जितना चाहे अश्लील भद्दी फिल्म गाने को सोशल मीडिया पर प्रदर्शित कर सकता है अथवा कर रहा है उसे कोई रोकने टोकने वाला नहीं है। ध्यान रहे एक शुद्ध मजबूत मां के गर्भ से ही ओजस्वी तेजस्वी बालक का प्राकट्य हो सकता है।

 फिल्मों के इतिहास को यदि पिछले सदी और इस सदी को तुलनात्मक आकलन करें तो प्रारंभ से ही 90 फीसदी से अधिक फिल्में अनैतिक प्रेम संबंध या चाहत से प्रेरित है। 90 फीसदी से अधिक गाने प्रेम मोहब्बत के लिखे और गाए गए हैं। बस फर्क यही है की पिछले सदी के गानों में थोड़ा बहुत कुछ मर्यादा हुआ करती थी, इस सदी के गाने में खुलमखुल्ला अश्लीलता का प्रदर्शन है चाहे वह सुकोमल कामआकर्षित अंग हो या शब्द। आज फिल्म के नायक नायिका थोड़े बारीक चड्डी गंजी पर बेढंग नृत्य कर रहे हैं वह दिन दूर नहीं जब नायक नायिका वस्त्र रहित नंगा नाच करेंगें। फिल्म जगत में रोमांटिक गाने और उपदेशिक तथा भक्ति गाने का प्रतिशत प्रेम मोहब्बत के गाने के अनुपात से बेहद कम है। फिल्मों में मार काट, रंगदारी, लिव इन रिलेशनशिप (अवैध सामाजिक मान्यता के विपरीत रखैल व्यवस्था) और जबरदस्ती बलात्कार के दृश्यों ने बाल मन पर कुठाराघात किया है। जब बच्चे 7 से 21 साल के अवस्था में होते हैं तो उन समय अनलोगो के स्वाधिष्ठान चक्र यानी की भावना केंद्र का विकास स्वत: होता रहता है इस दरमियान गलत, अमर्यादित अनैतिक, अश्लील दृश्य उनके मन बुद्धि मस्तिष्क पर किसी जोक के समान चिपक जाता है और पूरा उम्र वे उसी के अनुरूप कुआचरण में लिप्त रहते हैं और दूसरे मर्यादित व्यक्तियों से कुतर्क करते हैं की इसमें बुराई क्या है नए जमाने में यह सब जायज है।

शास्त्रों में काम पूर्ति के नियम सिद्धांत एवं मर्यादा निर्धारित की गई है और इस नियम के प्रतिकूल काम की चाह एवं पूर्ति कामवासना तथा अनैतिकता की परिचायक है।

आज वर्तमान परिवेश में अश्लील गाने का प्रचलन बड़ा तेजी से बढ़ा है। आजकल अश्लील गाना गाने का होड़ लगा है और गायक इसी प्रकार के गाने से हिट हो रहे हैं। गायक तो दोषी है ही साथ-ही-साथ अश्लील गाने को सुनने वाले स्रोता भी गायक से ज्यादा दोषी है जो उसके गाने को सुन कर उसे मशहूर बना रहे हैं।

आज बहु बेटियाँ माताएं सार्वजनिक स्थल पर खुलेआम अश्लील गाने बजने एवं सुनने से शर्मिंदा एवं लाचार, बेबस है।

अश्लील गाने का समाज पर त्वरित प्रभाव तो नहीं होता परंतु दूरगामी प्रभाव बड़ा ही इसके भयानक है। अश्लील गाने का दृष्टिलोकन, कर्णकुटी से जब अंदर मन, मस्तिष्क में अश्लील दृश्य एवं शब्द पहुंचते है तो कामविकार उत्पन होता है जब काम की पूर्ति नही होती तो जघन्य अपराध का अमूमन किस्सा सुनने को मिलता है। पूर्व समय मे रिश्तों का का बड़ा उच्च मर्यादा हुआ करता था परंतु अब वर्तमान में केवल अपना माँ-बेटा, अपना भाई-बहन का रिश्ता ही पाक-साफ बचा है इसके अलावा सारे रिश्ते-मर्यादा तार-तार होने की खबर आस-पास के परिवेश से ही मिलती है जिसका एक कारण अश्लील गाने सुनने, फिल्में देखने के वजह से भी है।

आज अश्लील गाना के गायक अश्लीलता भरे गाना गा के लोगो से आशीर्वाद मांगते है तो बड़ा हैरत होती है कि आखिर इनके माँ-पिता गुरु जानो ने कैसा संस्कार भरा है सत्य-असत्य, धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं है। प्रभु ने इतना सुंदर दुर्लभ मानव शरीर दिया है किसी अनैतिक कार्यों में लग के जीवन को दुरुपयोग करने के लिए नहीं। ये शरीर इस लिए मिली है कि आंखों से प्रभु के स्वरूप का दर्शन हो, कानो से प्रभु का गुणगान सुने, मन मस्तिष्क में प्रभु के लीलाओं का स्मरण हो तो फिर देखिए आनंद का पाराबार, परमानंद की मस्ती अच्छे शराब के नशे एवं अश्लिलता के सेवन से करोड़ों गुना ज्यादा आनंददायक होगा।

भक्ति गाने, उपदेशक गाने, रोमांटिक गाने गाए जाए जिसमे अश्लील शब्दो, दृश्यों का तनिक भी स्थान न हो फिर देखिए जीवन के सार्थकता का आनंद।

मोहम्मद रफी साहब, किशोर कुमार, मुकेश, महेंद्र कपूर, मन्नाडे, हेमंत कुमार, लता मंगेशकर, आशा भोसले को कौन नहीं जानता इनकी कालजयी और सुद्ध सात्विक गाने सदा के लिए अमर हो गए।

अतः हम सभी मिल के अश्लील गाने को न सुने न देखें तथा न प्रोत्साहित करें चाहे वह किसी भी गायक का गाना हो। 

सरकार से गुजारिश है की पूर्व में जितने भद्दी अश्लील गाने गाए गए और अमर्यादित फिल्म बनाए गए उनके कलाकारों निर्माताओं को चुन चुन कर तब तक सलाखों के पीछे रखे जब तक उनके अश्लील भद्दी गाने और फिल्मों सोशल मीडिया से पूर्णतः उनके द्वारा डीलिट न कर दिए जाएं। अन्यथा यह कोढ़ आने वाले युगों तक प्रवाहित होता रहेगा और अनेकानेक पीढ़ियों को अपने जद में लेकर बर्बाद और कुसंस्कारवान बनाता रहेगा। इस देश ऋषि मुनियों संत महात्माओं से लेकर स्वयं ईश्वर का जन्मस्थली रहा है। यहां नारी, शक्ति स्वरूपा जगत जननी पूज्यनीय आदरणीय सम्मानीय रही है। पश्चिमी सभ्यता के समान यहां नारी कोई खिलौना नहीं जो आज किसी और के साथ कल किसी दूसरे के साथ तथा परसो किसी तीसरे के साथ। यह देश माता सीता, पार्वती, अनसुइया, लक्ष्मीबाई, सावित्री फुले जैसे पवित्र नारियों के परंपरा में आगे बढ़ा है। नारियों के साथ उनके गोपनीय ढके अंगों के साथ अश्लील हरकते एवं शब्दो का खुलेआम जनसमुदाय में विभिन्न माध्यमों से प्रदर्शन किसी भी सभ्य समाज को सोभा नहीं देगा। इसे तत्काल बिना समय गवाएं सरकार को रोकने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। ऐसे अश्लील पोर्न स्टार्स, अभिनेता, निदेशक, फिल्म/गाने निर्मातों को किसी भी राजनैतिक पार्टी को विधायक सांसद जैसे संवेदनशील महत्वपूर्ण जनप्रतिनिधि का टिकट नहीं देना चाहिए  तथा ना ही मंत्रिमंडल में इन्हें स्थान देना चाहिए। इंद्रियों के वशीभूत लोगो के ही ये केवल चहेता सुपर स्टार, पॉवर स्टार हैं बाकी इनमें कोई जनकल्याणकारी सभ्य संस्कारित मर्यादित समाज सृजन करने की किसी भी प्रकार के न कोई सोच है और न छमता। ये केवल जिस्म के लुटेरे हैं जो अपने कार्यकाल में कई संघर्षरत बहन बेटियों को कुवारापन खत्म किए हैं। इनके कुप्रसिद्धि का लाभ लेकर हार रहे विधान सभा, लोक सभा के सीटों को जितना मनवोचित नहीं होगा। इनके चरित्र को कबीर जी के एक पंक्ति चरितार्थ करता है:-

नारी की झांईं परत अंधा होत भुजंग।

कबिरा तिनकी कौन गति जो नित नारी के संग।

अर्थात एक नारी को देख विषधर सर्प अपना मूल स्वभाव भूल जाता है। जो नित्य नवीन कई लड़कियों के साथ निवास कर रहा है, फिल्म, गाने शूटिंग कर रहा और उन्हीं के बीच दिन रात संगत कर रहा है उसका क्या मनो स्थिति होगा..? आप कल्पना खुद कर सकते हैं। कामदेव के पांचों बाण मारण, स्तम्भन, जृम्भन, शोषण, और उम्मादन (मन्मन्थ)से बच पाएगा वह..? इंद्रियों के वशीभूत ऐसे कलाकार से समाज कल्याण, समाज सुधार, परोपकारी सोच की कल्पना की जा सकती है की उन्हें अपना जनप्रतिनिधि बनाया जाए..? यह आम जनता को सोचना चाहिए।

ऐसे में जरूरत है "अश्लीलता के प्रभाव और मानवता" पर शोध करने का। इस विषय पर शोध करने वाले शोधार्थियों के लिए दिव्य प्रेरक कहानियाँ मानवता अनुसंधान केंद्र में पंजीयन सदैव नि:शुल्क रहेगा।

ऑनलाइन पंजीयन लिंक - 

https://dpkavishek.in/hrc.php

राष्ट्र लेखक और भारत साहित्य रत्न उपाधि से अलंकृत

डॉ. अभिषेक कुमार

(मुख्य प्रबंध निदेशक)

दिव्य प्रेरक कहानियाँ मानवता अनुसंधान केंद्र 

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