दुर्भाग्य - एक वृतांत

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ब्लॉग प्रेषक: राजीव भारद्वाज
पद/पेशा: व्यंग्कार
प्रेषण दिनांक: 05-01-2024
उम्र: 36
पता: Garhwa jharkhand
मोबाइल नंबर: 9006726655

दुर्भाग्य - एक वृतांत

दुर्भाग्य - एक वृतांत।

सच्ची घटना पर आधारित।

 पपलु बाबू बैंक पीओ का परीक्षा देके नागपुर से गढ़वा के लिए चल पड़े। साथ में मंगेसर काका का लड़का भी था, मंगेसर काका के लड़का मनीष, अडानी के कंपनी में एचआर थे। जानकार थे और नागपुर से परिचित भी। पपलु के परीक्षा दिलवाने की जिम्मेदारी उन्होंने बड़ी शिद्दत से निभाई। बंबई हावड़ा एक्सप्रेस में टिकट लिए थे, परीक्षा समाप्ति के बाद निकल पड़े दोनो । ट्रेन के थर्ड एसी में टिकट था। सुकून से चले, खाते पीते। छुक छुक रेल और घर पहुंचने की जल्दबाजी में मनीष बाबू वेयर इस माय ट्रेन एप खोल कर देखे जा रहे थे ताकि राउरकेला से रांची का कोई ट्रेन मिल जाए ताकि रांची समय से पहुंच जाएं क्योंकि बंबई हावड़ा ट्रेन का टिकट जमशेदपुर तक था और वो ट्रेन राउरकेला से अलग रूट में चल जाता था। चुकी जमशेदपुर से रांची पहुंचने में तीन घंटा लगता और राउरकेला से भी रांची तीन घंटे का ही रास्ता था।  झारसुगुड़ा स्टेशन के बाद मनीष बाबू देखे की एलेपी एक्सप्रेस उसी समय राउरकेला पंहुचेगी जिस समय बंबई हावड़ा पहुंचेगी। बांछे खिल गई की समय से रांची पहुंचेंगे और रांची से गढ़वा। पपलु बैग पैक रखो, उतर के सीधे एलेपी एक्सप्रेस में चढ़ना है, एकदम पकड़ लेना है।

 राउरकेला जैसे ही ट्रेन प्लेटफार्म नंबर तीन पर ट्रेन पहुंची की सामने चार नंबर से एलेपी एक्सप्रेस धीरे धीरे सरकना शुरू किया। मनीष और पपलु उतर कर भागे और एक बोगी के अंदर घुसे। बोगी के अंदर घुसने के बाद दोनो ने देखा की हर दरवाजे पर दो दो सिपाही बैठे हुए हैं और दरवाजे को लॉक कर रहे हैं।

 सवारी भी सब अजब गजब लग रहा था, कोई बोतल से खेल रहा था तो कोई गाना गा रहा था, कोई हंस रहा था तो कोई गाली दे रहा था, कुछ तो शांत बैठकर बौद्ध बने हुए थे, एक ने मनीष से कहा, आराम से बैठिए, ट्रेन है और सफर का मजा लीजिए। तभी एक काला सा आदमी ने गिनती प्रारंभ किया, एक दो तीन ..... बहत्तर साब सही है, गिनती सही है। गिनती सही है, दिल धड़का की किसका गिनती सही है। हम दोनो को मिला कर तो चौहत्तर होना चाहिए था, साला बहत्तर ही कैसे। 

ये सामान्य घटना नही था, ये सौभाग्य नही बल्कि दुर्भाग्य था, क्योंकि चेन्नई से हर मंगलवार एलेपी एक्सप्रेस से पागलों को रांची मानसिक अस्पताल में शिफ्ट किया जाता था। हर मंगलवार को एक बोगी पागलों के लिए रिजर्व रहता था। हड़बड़ाहट में चढ़ तो गए थे, साला दिमाग अब काम ही नहीं कर रहा था, लग रहा था बझ गए हम दोनो।

 मनीष तुरंत ट्रेन वाला पुलिस के पास पहुंचा और बोला आदरणीय हम दोनो का परीक्षा था, गलती से ट्रेन में चढ़ गए, हम लोग पढ़े लिखे वाला लड़का हैं, पागल नही है। कृपया अगले स्टेशन पर हमे दूसरी बोगी में जाने का अनुमति प्रदान करें।

 हमलोग पागल नही हैं, कोई बात नही बाबू अठारह घंटा से सब यही बोल रहा है की हमलोग पागल नही हैं।

 चुप रहो और बैठो, सर हमलोग पागल नही हैं ! तभी एक झन्नाटेदार तमाचा और मनीष का गाल सुन्न। चुप रहने में ही भलाई समझी दोनो ने।

 रांची पहुंचते ही दोनो ने पिछले दरवाजे से निकलना चाहा लेकिन पुलिस वाले भईया भर अकवारी पकड़ के स्टेशन के बाहर रिनपास वाले ट्रक में लोड कर दिया। बेचारा दुनो रास्ता भर बोलते रहा की हमलोग परीक्षा देके आ रहे हैं, हमलोग पागल नही हैं लेकिन मानने को कोई तैयार ही नहीं, अलबत्ता दूसरा पागल लोग भी चिल्ला चिल्ला के बोलने लगा हम पागल नही, हम पागल नही।

 रिनपास मनोचिकित्सा महाविद्यालय के वरीय चिकित्सक के सामने सभी को लाया गया, वहां मनीष ने अनवरत आंग्ल भाषा में कहा की By mistake we boarded this train and all the mad people considered us mad and brought us here whereas I am not mad because I was never mad, you understand because you are a doctor, if you don't understand then who will.  Let me go from here. इतना सुनना था की डाक्टर साहब के चेहरे पर एक मुस्कान उभरा और वहां लगभग चालीस प्रतिशत पागलों ने अनवरत धाराप्रवाह अंग्रेजी में बात करना शुरू कर दिया। डाक्टर साहब आश्वस्त हुए और सभी को नींद का इंजेक्शन देने का फरमान जारी कर दिया। दो दिन बाद मनीष की नींद खुली तो देखा की एक पागल उसके सर से ढील निकाल रहा है और बोल रहा है की बेटी जल्दी बियाह होगा तोर, चिंता मत करो।

 खैर होइहें वही जे राम रची राखा, इसी महाविद्यालय में गढ़वा शहर के ही एक शोधकर्ता थे उनके प्रयास से एक सप्ताह बाद उचित इलाज के माध्यम से इन सबों को वापस निकाला गया।  लेकिन सवाल सिर्फ इतना की क्या आवश्यकता थी यह कहने की कि हम पागल नही, क्या जरूरत आन पड़ी थी अंग्रेजी बोलने की जबकि स्थानीय भाषा बोला जा सकता था। खैर दुर्भाग्य न सब दिन सोता है, देखें आगे क्या होता है।

स्मृति के आधार पर

प्रोफेसर मनीष तिवारी द्वारा बताए गया वृतांत।

बाकी सब फर्स्ट क्लास है।

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