करती ही क्या हो?

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ब्लॉग प्रेषक: अमृता विश्वकर्मा
पद/पेशा: साहित्यकार
प्रेषण दिनांक: 13-01-2024
उम्र: 24
पता: सिलाव, नालंदा
मोबाइल नंबर: **********

करती ही क्या हो?

सुबह सुबह सफाई, बर्तन, नाश्ता, तुम्हारा टिफिन, बच्चों का टिफिन,

तैयार करते करते,

खुद नाश्ता करना भूल गई।

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?


सोचा था दोपहर में,

थोड़ा आराम करूंगी।

पर तुम्हारे कुछ रिश्तेदार आ गए,

वो किसी चीज की शिकायत ना करे,

इसके लिए अपना आराम भूल गई,

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?


शाम को बाजार जाओ,

सामान लाओ,

बच्चों का होम वर्क कराओ,

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?

 

रात का खाना बनाना,

फिर कल क्या बनाऊं,

सबकी पसंद के खाने के लिए अपनी पसंद के खाने को अपेक्षा कर देती हूं,

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?


रात हुई अब थोड़ा चैन की नींद सोऊंगी,

पर बच्चे उठ गए, 

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?



सुबह से शाम तक,

काम करते- करते थक गई।

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?


दूध, राशन, कपड़े

 सबका हिसाब रखती हूं,

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?



अपने भाई - बहन,माता - पिता

सबको छोड़ कर आई हूं।

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?


अपने सपनों को आहुति दे कर,

किसी और के सपनों को सजाई हूं,

और लोग कहते हैं

तुम करती ही क्या हो?


अपना घर छोड़ कर,

तुम्हारा घर बसाई हूं,

और लोग कहते हैं

तुम करती ही क्या हो?


मायके की आजादी से निकल कर,

तुम्हारी गुलामी करती हूं,

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?


अपना बचपना भुला कर,

तुम्हारे बच्चे को संभालती हूं,

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?


24 घंटे बिना रुके,

तुम्हारे परिवार की जिम्मेदारी उठाती हूं,

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?


कभी रसोई घर में भागती हूं,

तो कभी सास की मालिश,

ससुर की दवाई के लिए भागती हूं,

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?


यदि घर की आर्थिक स्थिति खराब हो जाए तो,

तुम्हारे साथ कंधे से कन्धा मिला कर काम करती हूं,

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?


तबियत चाहे कितनी भी खराब हो,

रसोई में भोजन बनाती रहती हूं,

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?


सुबह सबसे पहले,

और रात में सबसे बाद सोती हूं,

सबकी जरूरतें पूरा करती हूं

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?


तुम्हारे परिवार को खुश रखने के लिए,

अपनी खुशी त्याग कर देती हूं,

और तुम कहते हो,

तुम करती ही क्या हो?


अब तुम ही बताओ, 

क्या करूं मैं तुम्हारे लिए,

जिससे तुम कभी ये ना कहो कि,

तुम करती ही क्या हो?

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