बस में यात्रा कसम से बस हो गया।

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ब्लॉग प्रेषक: राजीव भारद्वाज
पद/पेशा: व्यंग्यकार
प्रेषण दिनांक: 11-01-2025
उम्र: 37
पता: गढ़वा झारखंड
मोबाइल नंबर: 9006726655

बस में यात्रा कसम से बस हो गया।

बस में यात्रा कसम से बस हो गया।

शकील बदायूंनी का एक शेर में मेरे तरफ से जोड़ा गया "वादा करता हूं कल से बस में सफर करूंगा नहीं, और इस बस के सफर में फ़सूँगा नहीं, मगर वादा करने से पहले मेरे हमकदम बस एक सफर आखिरी आखिरी"।

इस बार अपने दोस्त के साथ निकलना था एक प्रतियोगिता परीक्षा के लिए। पिछली बार कसम खाई थी कि बस में यात्रा नहीं करूंगा, लेकिन ट्रेन में बेतहाशा भीड़ और स्लीपर क्लास में यात्रियों को परीक्षार्थियों द्वारा नींद से उठा के फेंकाने के डर से कसम तोड़नी पड़ी और बस में यात्रा के लिए मजबूर होना पड़ा। ये यात्रा रूह को कंपा देने वाला रहा। खैर....

शाम को मस्त नहा धो के रात्रि बस पकड़ना था। इस बार भी डाल्टनगंज का बस स्टैंड मेरा इंतजार कर रहा था। मैं और मेरा जिगरा दोस्त निकल पड़े अंजान रास्ते पर भविष्य बनाने वाली परीक्षा देने।

 हा जी कहां जाना है। भईया पटना का दु गो टिकट बना दीजिए, आगे दीजिएगा, पीछे बड़ी पटकता है। पिछला सीटवा के का करें, गाय गोरू बैठा दें। एक सीट आगे है और एक सीट पीछे दु सीटर में खाली है, एक लेडीज बैठी है, शकल से आप लोग शरीफ लग रहे हैं इसलिए पीछे महिला के पास दे रहे हैं। भईया काट दीजिए का आगे का पीछे, जाना तो सबको पटना ही है न, कहते हुए मेरा दोस्त बैग लेके सीधे महिला के बगल में पिछला सीट पर और मैं सबसे आगे कंडक्टर के बगल में। साला जीवन में ऐसा मेरे ही साथ क्यों होता है! उधर दोस्त की नज़रे मानो मुझे कह रही हो कि उतर जाओ बस से और घर पर जाकर कह दो कि जिसके साथ परीक्षा देने जा रहे थे उसका रिजल्ट हो गया, ज्वाइनिंग की तैयारी में है। साला बस में चढ़ते मन कुफ़ुत हो गया। और आगे जे सीट पर हम थे वहां बस ड्राइवर का कच्छा और गंजी पसारा हुआ था, और उसमें से पानी की बूंदे मेरे कपार पर टीस टीसा रहा था। बस में जिसका भाग्य इतना खराब हुआ परीक्षा में का होगा, भगवाने मालिक। जिस दिन हम बस में चलेंगे उसी दिन एक से एक भूआयल और जोआयल यात्री निकलते है, अगल बगल बस चलन से पहले करिया पॉलीथिन दिया गया, उल्टी करने के लिए। पॉलीथिन मिलते ही बगल के सीट की चाची ट्रायल के तौर पर एक बार बक (उल्टी कर) के पॉलिथिन बांध कर अपन पानी के बोतल के बगल में सहेज कर रख ली। मुझे अंदाजा हो गया, रात भर ओक ओक की मधुर ध्वनि और लजीज व्यंजनों का सुगंध मिलता रहेगा। दूसरी तरफ मित्र को राज सिंघासन मिल चुका था। वो राज भोग रहे थे, मन में आया कि अभी से ही मित्रता को अंजाम पर पहुंचा दूं, लेकिन घर से कम पैसा मिलने के कारण और उसी के पैसे से दो दिन पलना है, सोच कर अंदर ही अंदर मसोसकर रह गया।

 बस चल रही थी, मैने सोचा चलो मित्र को देख लूं क्या कर रहा है, सीट से उठा और पीछे जाने के लिए दो सीट ही पार किया था कि एक मौलवी साहब ने मुझे कहा रुकिए देखिए बीच में क्या है। मै नीचे फर्श पर देखा तो मुझे अखबार नजर आया, और अखबार के ऊपर के पन्नों पर अपना झंडा तिरंगा दिखा। मन गर्व से भर गया कि कौन कहता है कि मुस्लिमों को राष्ट्र से प्रेम नहीं। कुछ सोच कर मैने उस अखबार को नीचे से उठाया और मौलवी साहब के गोद में रख दिया। बस इतना ही किया था कि मौलवी साहब हड़बड़ा कर उठे और मुझे दो चांटे रशीद किए, हमरा भक मार गया कि इतना जल्दी इस्लाम खतरे में कैसे आ गया। और मौलवी साहब गाली को तरन्नुम में मुझे सुना रहे थे कि बगल के चाची वाला उल्टी का पॉलिथिन नीचे गिर के फैट गया था और उल्टी बाहर गिर गया था, ज्यादा छितराए नहीं इसलिए उसके ऊपर अखबार डाल दिया गया था। मौलवी साहब का गोद गंदा हो गया था। लाहौल बिला कूवत की सबको समझाने के बाद मेरा खैर मखदम हुआ।

 अभी दुर्दशा बाकी था मेरा। गाड़ी रफ्तार पकड़ी हुई थी, हवा सर सर कपार से होकर गुजर रहा था। रिमोट से लहंगा उठाने वाला गाना बज रहा था, और हम सिर्फ अपने मित्र के बारे में सोच रहे थे, रिमोट का असली मज़ा तो उसे आ रहा होगा। तभी अचानक गाड़ी में ब्रेक लगा, मौलवी साहब अपन सीट से चार सीट आगे लुढ़क गए। या अल्लाह रहम ! उनके मुंह से आवाज आई। गाड़ी रुकी क्योंकि आगे रोड पर बीचों बीच पत्थर लगा था, गाड़ी निकलने का कोई जगह नहीं था। गाड़ी का रुकना और गेट पर चार पांच आदमी द्वारा गेट खटखटाना। दिक्कत ई है कि बस के सभी स्टाफ बस रोकवाने वाले को सवारी समझता है, खलासी तुरंत गेट खोला और बोला कहां जाना है। गाड़ी के अंदर आते ही उसमें से एक ने मां के आगे प्रत्यय लगाया और एक चमाट हमर गाल पर लगाया। हम मन ही मन रिमोट से लहंगा उठा रहे थे कि चमाट से तंद्रा भंग हुआ और जोर से चिहुंक गए । चलो पर्स निकालो, मोबाइल दो, कान नाक गला का जेवर निकाल के देते जाओ, ईमानदारी से दे दो नहीं तो दुःख हरण के साथ साथ जीवन हरण का भी हथियार है मेरे पास। एक आदमी मेरे बगल में, साला कोई पर्स निकालने में जरा भी देर करे तो एक उधर से आवाज आती साथी भाई जरा जमाओ तो उसको, और मेरा झोंटा धर के चार पांच चपत हमको लगाया जाता, मेरे चीखने चिल्लाने से गजब का भय व्याप्त हो रहा था, मैं जितना चिल्लाता सब उतना ही जल्दी पैसा निकालता। बस यहीं गलती हो गया हमसे, मित्र के पास जब वो सब पहुंचा तो बोला कि मेरे पास कुछ भी नहीं। उसका इतना कहना कि हमरा नौ नतीजा कर दिया लुटेरा हमको। हमको जितना मार पड़ता मित्र को उतना ही आनंद आता। जब तक मैं अधमरा नहीं हुआ तब तक मेरे मित्र ने अपना पर्स नहीं निकाला। यहां एक बात बताना भूल गया था कि गाड़ी रुकते ही मैने अपना मोबाइल अपने मोजे में डाल दिया था। सबको लूटने के बाद मेरे पास जब लुटेरों का सरदार पहुंचा और बोला मोबाइल लाओ तो मैने कहा मोबाइल नहीं है मेरे पास। तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी, फिर क्या था बाकी का भी पूरा हुआ मेरा। मेरा पर्स और मोबाइल दोनों उनके कब्जे में। एक बात गौर करने वाली थी कि हमरा छोड़ कर किसी भी अन्य पैसेंजर पर हिंसा नहीं किया उन सबों ने। लूटने के बाद वो सब गाड़ी रोक और नीचे उतर कर बोला, बढ़ाओ गाड़ी, आप सबों की यात्रा सुखद हो। गाड़ी जैसे ही चलने को हुआ कि उसमें से एक ने कहा रोको, गाड़ी फिर रुकी और एक लुटेरे ने मेरा पर्स और मोबाइल मुझे वापस कर दिया। वापस करते मौलाना साहब की नजर पड़ गई थी। खैर गाड़ी चल दी, सब सवारी कंडक्टर से झगड़ रहे थे और मैं अपने दर्द को सहज बनाने की दिशा में लगा था। गाड़ी हरिहरगंज थाना में पहुंची। सब सवारी उतरे, मौलाना साहब सबसे पहले। मौलाना साहब दारोगा को जाकर बतलाए कि सर एक सवारी का लुटेरा लोग पर्स और मोबाइल दोनों वापस कर दिया, और हां वो बनावटी ढंग से बड़ी चिल्ला भी रहा था, ऐसा जैसे उसको बड़ी मार पड़ रहा हो। इतना सुनते ही मुझे प्रेम से थाना में बैठाया गया और बाकी सवारी को जाने का फरमान जारी किया गया। मैने अपने मित्र से बोला घर जाना तो बोल देना मेरे बारे में की उसका सिलेक्शन हो गया है, छ महीने के ट्रेनिंग में भेज दिया है विभाग।

आज पलामू केंद्रीय कारागार से निकला हूं। घर जाना है, आप बताइए ट्रेन सही रहेगा या बस। बाकी सब फर्स्ट क्लास है।

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