डॉ अभिषेक कुमार द्वारा लिखित पुस्तक गिरवी ज़मीर की समीक्षा।

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ब्लॉग प्रेषक: डॉ.यल.कोमुरा रेड्डी
पद/पेशा: शिक्षक व साहित्यकार
प्रेषण दिनांक: 06-07-2025
उम्र: 46
पता: वारंगल जिला, तेलंगाना
मोबाइल नंबर: +91 98492 32146

डॉ अभिषेक कुमार द्वारा लिखित पुस्तक गिरवी ज़मीर की समीक्षा।

"सत्ता की दौड़ में ज़मीर की आहूति: "गिरवी ज़मीर" 

          (डॉ.अभिषेक कुमार जी की पुस्तक की समीक्षा)

   समीक्षाकार:  डॉ .यल.कोमुरा रेड्डी, वारंगल, तेलंगाना 

          "गिरवी ज़मीर" भारतीय ग्रामीण राजनीति के यथार्थ और व्यक्तिगत नैतिकता के ह्रास को दर्शाती एक मार्मिक कथा है । यह कहानी एक पान की दुकान चलाने वाले ईमानदार और सिद्धांतवादी रामचेत चौरसिया के ग्राम प्रधान बनने की यात्रा के माध्यम से समकालीन लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार, छल-कपट और मानवीय मूल्यों के पतन का विस्तृत चित्रण प्रस्तुत करती है। कहानी का शीर्षक "गिरवी" न केवल भौतिक संपत्ति बल्कि मानवीय ज़मीर और सिद्धांतों के गिरवी रखे जाने का प्रतीक है।

कहानी का सार

            कहानी की शुरुआत कलावती की उदासी से होती है, जो अपनी गिरवी रखी गहनों की वजह से चिंतित है । इसी बीच उसके पति रामचेत चौरसिया, जो एक सम्मानित और हंसमुख स्वभाव के पान वाले हैं, प्रसन्नता से घर लौटते हैं और कलावती के गहनों तथा अपनी गिरवी रखी ज़मीन को छुड़ा लाने की खबर देते हैं । कलावती की खुशी के बीच उनकी बेटी गुड़िया का गाय और बछड़े को वापस लाने की इच्छा, जो गहनों के साथ बेच दिए गए थे, एक छोटी सी घटना के रूप में कहानी में भावनात्मक गहराई जोड़ती है और यह दर्शाती है कि कुछ नुकसान स्थायी होते हैं ।

       कहानी का मुख्य मोड़ तब आता है जब रामचेत चौरसिया को ग्राम प्रधान के चुनाव लड़ने के लिए उकसाया जाता है । प्रारंभ में अनिच्छुक और चुनावी खर्चों से भयभीत, चौरसिया जी अंततः अपने समर्थकों और राज-सुख की लालसा में चुनाव लड़ने का मन बना लेते हैं । चुनाव जीतने के लिए वे अपनी पत्नी के गहने झुमन सेठ के पास गिरवी रख देते हैं । इस दौरान झुमन सेठ द्वारा कलावती के प्रति की गई अभद्र टिप्पणी और कलावती का प्रतिरोध कहानी में एक नया आयाम जोड़ता है, जो नारी सम्मान और आत्मरक्षा के महत्व को दर्शाता है ।

           चुनाव प्रचार के दौरान प्रत्याशियों द्वारा अपनाए जाने वाले हथकंडे - पैसों का वितरण, मुफ्त भोजन, दारू, मांस-मछली की दावतें, और चुनावी चिन्ह वाली वस्तुओं का गुप्त वितरण - भारतीय चुनावों की कड़वी सच्चाई को उजागर करते हैं । रामचेत चौरसिया भी, अनिच्छा से ही सही, इन सब गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं । अंततः वे मात्र 39 वोटों से विजयी होते हैं, लेकिन चुनावी खर्चों का बोझ उन्हें परेशान कर देता है ।

प्रधान बनने के बाद चौरसिया जी को सत्ता का सुख मिलता है, लेकिन उन्हें जल्द ही भ्रष्टाचार और लालफीताशाही का सामना करना पड़ता है । विकास कार्यों के लिए धन निकासी में होने वाली कमीशनखोरी और अधिकारियों की उदासीनता उन्हें हताश करती है । कहानी वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर गंभीर सवाल उठाती है, जहां जातिगत राजनीति, भ्रष्टाचार और सत्ता की लालसा ईमानदारी और जनसेवा पर भारी पड़ जाती है ।

प्रमुख विषय-वस्तु

राजनीति में भ्रष्टाचार: 

     कहानी का सबसे प्रमुख विषय चुनावी प्रक्रिया में पैसे, शराब और अन्य प्रलोभनों का बोलबाला है। यह दर्शाती है कि कैसे ईमानदार व्यक्ति भी इस दलदल में फंसकर अपने सिद्धांतों से समझौता कर लेता है ।

नैतिकता का पतन और ज़मीर का गिरवी होना: 

कहानी का शीर्षक इस केंद्रीय विषय को रेखांकित करता हैकि  रामचेत का अपनी पत्नी के गहनों को गिरवी रखना, और फिर अनैतिक चुनावी हथकंडों को अपनाना, यह दर्शाता है कि सत्ता की चाहत में व्यक्ति अपने नैतिक मूल्यों को कैसे दांव पर लगा देता है ।

लोकतंत्र की सच्चाई: 

       कहानी भारतीय लोकतंत्र की जमीनी हकीकत को उजागर करती है, जहां "जनता द्वारा, जनता के लिए" शासन का आदर्श खोखला प्रतीत होता है और चुनाव एक महंगा और आडंबरपूर्ण तमाशा बन जाता है ।

सामाजिक टिप्पणी: 

     कहानी गरीबी, बेरोजगारी, जातिगत राजनीति और सरकारी तंत्र में व्याप्त लालफीताशाही पर भी टिप्पणी करती है, जो समाज की जटिल समस्याओं को दर्शाती है ।

कहानी में कहानीकार ने कुछ प्रमुख पात्रों के माध्यम से ग्रामीण समाज और राजनीतिक विसंगतियों को सजीवता से प्रस्तुत किया है। इन पात्रों का चरित्र-चित्रण इस प्रकार है:

1. रामचेत चौरसिया

रामचेत चौरसिया कहानी के केंद्रीय पात्र हैं और उनके चरित्र में ही कहानी का मुख्य संघर्ष निहित है।

ईमानदार और हंसमुख: कहानी की शुरुआत में रामचेत चौरसिया को एक मेहनती और ईमानदार पान विक्रेता के रूप में चित्रित किया गया है। वह प्रसन्नचित्त स्वभाव के हैं और अपने परिवार के प्रति समर्पित हैं। उनके लिए अपनी पत्नी के गहने और गिरवी रखी ज़मीन को छुड़ाना बड़ी खुशी का पल है।

सिद्धांतवादी और अनिच्छुक राजनेता: 

प्रारंभ में, वह राजनीति से दूर रहना चाहते हैं। चुनाव लड़ने के विचार से ही वह खर्चों और भाग-दौड़ के कारण भयभीत हो जाते हैं। यह उनकी सिद्धांतवादी प्रवृत्ति को दर्शाता है कि वह गलत तरीके से चुनाव नहीं जीतना चाहते।

विवश और समझौतावादी: समाज और अपने समर्थकों के दबाव तथा सत्ता के आकर्षण में फंसकर वह अंततः चुनाव लड़ने का निर्णय लेते हैं। इस बिंदु पर उनका चरित्र बदलना शुरू होता है। वह अपनी पत्नी के गहने दोबारा गिरवी रखते हैं और धीरे-धीरे चुनावी तिकड़मों, जैसे पैसे बांटने और झूठे वादे करने में शामिल होते जाते हैं। यह उनकी विवशता और ज़मीर से समझौते को दर्शाता है।

पीड़ित और हताश: 

चुनाव जीतने के बाद भी वे खुश नहीं दिखते, क्योंकि चुनावी खर्चों का बोझ उन पर हावी रहता है। प्रधान बनने के बाद उन्हें सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी का सामना करना पड़ता है, जिससे वे हताश और असहाय महसूस करते हैं। उनका चरित्र यह दर्शाता है कि कैसे व्यवस्था एक ईमानदार व्यक्ति को भी अपनी चपेट में ले लेती है।

2. कलावती

कलावती, रामचेत चौरसिया की पत्नी, एक व्यावहारिक और स्वाभिमानी महिला है। संवेदनशील और चिंतित: कहानी की शुरुआत उसकी गहनों के कारण उदासी से होती है, जो उसकी संवेदनशील प्रकृति को दर्शाता है। वह अपने पति की आर्थिक स्थिति और सामाजिक प्रतिष्ठा को लेकर चिंतित रहती है।

मजबूत और स्वाभिमानी: 

जब झुमन सेठ उसके गहने गिरवी रखते समय अभद्र टिप्पणी करता है, तो कलावती तुरंत पलटवार करती है और अपने आत्मसम्मान की रक्षा करती है। यह उसका मजबूत और स्वाभिमानी पक्ष दिखाता है। वह अपनी गरिमा से कोई समझौता नहीं करती।

समर्थक और धैर्यवान: 

वह अपने पति के चुनाव लड़ने के फैसले का समर्थन करती है, भले ही इसके लिए उसे अपने प्रिय गहनों को दोबारा गिरवी रखना पड़े। यह उसका अपने पति के प्रति विश्वास और धैर्य दर्शाता है।

3. गुड़िया

गुड़िया, रामचेत और कलावती की बेटी, कहानी में मासूमियत और निश्छल प्रेम का प्रतीक है।

मासूम और भावनात्मक: 

वह अपनी माँ के गहनों की वापसी से अधिक गाय और बछड़े की वापसी के लिए उत्सुक है, जिन्हें बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उसका मासूम रोना और गाय-बछड़े के प्रति उसका प्रेम कहानी में भावनात्मक गहराई जोड़ता है।

भावनात्मक प्रतीक: 

गुड़िया का चरित्र यह दर्शाता है कि भौतिक लाभ (गहने, पद) के लिए किए गए त्यागों की भावनात्मक कीमत क्या होती है। वह उन निर्दोषों का प्रतिनिधित्व करती है जो बड़े-बड़ों के फैसलों से अप्रभावित दिखते हुए भी गहरे भावनात्मक नुकसान उठाते हैं।

4. झुमन सेठ

झुमन सेठ एक अवसरवादी और लालची महाजन का प्रतिनिधित्व करता है।

सूदखोर और शोषणकारी: 

वह लोगों की मजबूरी का फायदा उठाता है और उन्हें ऊँची ब्याज दरों पर पैसा उधार देता है। वह कलावती के साथ अभद्र व्यवहार करने से भी नहीं हिचकिचाता।

परिणाम भुगतने वाला: 

हालाँकि वह धन के लिए अनैतिक कार्य करता है, अंत में उसे अपने कार्यों का फल भुगतना पड़ता है जब उसका परिवार उसे छोड़कर चला जाता है। उसका चरित्र समाज में व्याप्त शोषण और उसके परिणामों को दर्शाता है।

5. अन्य पात्र (समर्थक, विरोधी प्रत्याशी, सरकारी अधिकारी)

अवसरवादी और स्वार्थी: 

रामचेत के समर्थक और विरोधी प्रत्याशी वे लोग हैं जो चुनाव को केवल जीत-हार के खेल और व्यक्तिगत लाभ के साधन के रूप में देखते हैं। वे पैसे, शराब और अन्य प्रलोभनों का उपयोग करने में कोई संकोच नहीं करते। ये पात्र चुनावी प्रक्रिया में व्याप्त भ्रष्टाचार और नैतिक ह्रास को दर्शाते हैं।

उदासीन और भ्रष्ट: 

सरकारी अधिकारी और कर्मचारी वे हैं जो विकास कार्यों के लिए धन निकासी में कमीशन लेते हैं और आम जनता की समस्याओं के प्रति उदासीन रहते हैं। ये पात्र सरकारी तंत्र की लालफीताशाही और भ्रष्टाचार को उजागर करते हैं।

इन सभी पात्रों के माध्यम से, "गिरवी ज़मीर" भारतीय ग्रामीण राजनीति के एक यथार्थवादी और चिंताजनक चित्र को प्रस्तुत करती है, जहाँ व्यक्ति और समाज दोनों नैतिक पतन के दलदल में फंसते जा रहे हैं।

निष्कर्ष 

                “गिरवी ज़मीर"कहानी भारतीय प्रजातंत्र के भीतर पल रही उन कड़वी सच्चाइयों का एक मार्मिक और यथार्थवादी चित्रण प्रस्तुत करती है, जहाँ जनसेवा का आदर्श अक्सर सत्ता-लिप्सा और धन के खेल के आगे घुटने टेक देता है। रामचेत चौरसिया का चरित्र इस नैतिक पतन का एक जीता-जागता उदाहरण है, जो ईमानदारी और सादगी के पथ से भटककर चुनावी दलदल में उतर जाता है। यह कहानी हमें दिखाती है कि कैसे एक सामान्य व्यक्ति, व्यवस्था के दबाव और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के चलते, न केवल अपनी भौतिक संपत्ति (गहने) को गिरवी रखता है, बल्कि उससे कहीं अधिक मूल्यवान अपनी अंतरात्मा और सिद्धांतों (ज़मीर) को भी दांव पर लगा देता है।

                 कहानी का केंद्रीय संदेश स्पष्ट है: चुनाव एक ऐसी प्रक्रिया बन गई है जहाँ मतों को खरीदा और बेचा जाता है, और वादे अक्सर खोखले साबित होते हैं। यह स्थिति केवल व्यक्तियों को भ्रष्ट नहीं करती, बल्कि पूरे सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर करती है। जब समाज में नैतिकता का ह्रास होता है और स्वार्थपरता हावी हो जाती है, तो उसके गंभीर और दूरगामी परिणाम होते हैं, जैसा कि चौरसिया जी के चुनाव जीतने के बाद की परिस्थितियों में स्पष्ट होता है। वे भले ही प्रधान बन गए हों, लेकिन उनकी व्यक्तिगत शांति और नैतिक शुद्धता कहीं खो जाती है।

                 यह कहानी एक शक्तिशाली चेतावनी के रूप में कार्य करती है कि यदि प्रजातांत्रिक प्रक्रिया में व्याप्त इन विसंगतियों और नैतिक क्षरण पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया, तो हमारी यह व्यवस्था अपने मूल स्वरूप को खो सकती है। यह हमें सोचने पर विवश करती है कि क्या हम वास्तव में उसी प्रजातंत्र में रह रहे हैं जिसकी कल्पना हमारे संविधान निर्माताओं ने की थी, या यह केवल एक दिखावा बनकर रह गया है जहाँ ज़मीर का मोल कुछ क्षणिक लाभों से अधिक नहीं है। "गिरवी कहानी" एक दर्पण है, जो हमें हमारे समाज और राजनीति के स्याह पक्ष से परिचित कराता है, और एक बेहतर भविष्य के लिए आत्म-चिंतन की प्रेरणा देता है।

           

                                              डॉ.यल.कोमुरा रेड्डी 

                                               हिन्दी प्राध्यापक, 

                                     शासकीय कनिष्ठ महाविद्यालय, 

                                नरसम पेट, वारंगल जिला, तेलंगाना

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