मानव सिर्फ दो हाथ,दो पैर,दो कान,दो आंख,एक जीभ और एक नाक का सम्मुचय नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों का ऐसा सम्मुचय है, जो मानव को विश्व के अन्य जीव-जंतुओं से अलग और श्रेष्ठ बनाता है। विश्व में एक मानव ही ऐसा प्राणी है,जो न केवल मानवों, बल्कि तमाम जीव-जंतुओं की बेहतरी की चिंता करता है। यही नहीं,वह अतीत से सीख लेते हुए वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की भी चिंता करता है। मानवीय मूल्यों का विकास कोई एक दिन में नहीं, बल्कि हजारों साल मे हुआ है। भिन्न-भिन्न समय में भिन्न- भिन्न मूल्यों का विकास हुआ। उदाहरणार्थ, प्रागैतिहासिक काल में मानव गिरि-कंदराओं में रहा करते थे और कंद-मूल, मांस आदि खाया करते थे।जब जानवरों ने उनपर हमला किया,तब मानवों ने एक साथ मिलकर उसका प्रतिकार किया। वहीं से मानवों में सहयोग करने का मूल्य विकसित हुआ।इस प्रकार हम पाते हैं कि बर्बर से विनम्र और दुर्जन से सज्जन बनने की यात्रा मानवों ने हजारों वर्षों में पूरी की है। जिनके अंदर मानवीय मूल्यों का खजाना नहीं है,वे मानव हरगिज नहीं हो सकते। हां,मानव होने का नाटक अवश्य कर सकते हैं। ये मानवीय मूल्य ही मानव के आभूषण हैं और यही समग्र रूप से मानवता है। वस्तुत: मानवता ही मानव होने की पहली शर्त है।
मानवता की बात हर कोई करता है, मगर मानवता पर अनुसंधान की बात करना थोड़ा विचित्र अवश्य प्रतीत होता है,मगर इस विषय पर ठहरकर जब हम सोचते हैं, तो इसके दूरगामी साकारात्मक प्रभाव में हम खो जाते हैं। धन्य है! दिव्य प्रेरक कहानियाँ मानवता अनुसंधान केन्द्र, जिसने इस अनछुए विषय को केंद्र में रखकर इस शब्द की विराटता के दर्शन कराए। निश्चित रूप से दिव्य प्रेरक कहानिययाँ मानवता अनुसंधान केन्द्र द्वारा मानवता के विभिन्न स्वरूपों और प्रभावकारी शक्तियों का अध्ययन, विकास और उत्प्रेरण किया जाना, सभ्यता एवं संस्कृति के उच्चतम मानदंड का द्योतक है। इस बहाने मानवता में डाक्ट्रेट की मानद उपाधि पाने का भले सुनहरा और प्रामाणिक अवसर हो, मगर इसका संदेश कितना दूर तक जाएगा, कल्पनातीत है।
इस उच्च मंजिल की ओर अग्रसर रथ के सारथी डॉ. अभिषेक कुमार बेशक साधुवाद के पात्र हैं। वे न केवल युवा, जिज्ञासु, जुनूनी और जानकार हैं, बल्कि मानवता के पताका को अखिल विश्व में फहराने के लिए नित्य युद्धरत हैं। प्रबल विश्वास है कि ऐसे आध्यात्मिक सारथी के होते, मंजिल कठिन नहीं होगा।
--------- अंत में, इस महत्वाकांक्षी मिशन के जनक, प्रेरक और अन्य कार्यवाहक को हृदय से धन्यवाद, स्वागत और बधाई। महामानव डॉ नानकदास जी को सश्रद्ध नमन।
----- अंगद किशोर
इतिहासकार,साहित्यकार एवं शिक्षाविद्
जपला, पलामू, झारखंड