ब्लॉग प्रेषक: | अभिषेक कुमार |
पद/पेशा: | साहित्यकार, सामुदाय सेवी व प्रकृति प्रेमी, ब्लॉक मिशन प्रबंधक UP Gov. |
प्रेषण दिनांक: | 01-08-2022 |
उम्र: | 32 |
पता: | आजमगढ़, उत्तर प्रदेश |
मोबाइल नंबर: | 9472351693 |
शरीर में सुषुप्त सात दिव्य शक्ति केंद्रों को जागृत करने की रहस्मयी जानकारी
शरीर में सुषुप्त सात दिव्य शक्ति केंद्रों को जागृत करने की रहस्मयी जानकारी
मनुष्य शरीर के अंदर दिव्य शक्ति के सात केंद्र मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धि चक्र, आज्ञा चक्र और सहस्रार चक्र है जो सभी जाती, धर्म सम्प्रदायों के मनुष्यों में पाया जाता है सभी मनुष्यों का शरीर एक ही सिद्धांत नियम पर कार्य करता है। मनुष्य तन के रहस्यों को जो जितना समझ लेता है उसके अनुसार उपयोग कर लेता है वह उतना ही सामर्थ्यवान महान हो जाता है।
शरीर के सबसे निचले हिस्से में मूलाधार चक्र है जो लिंग और गुदा के मध्य में स्थित है। इसी चक्र में कुंडलिनी शक्ति का नित्य निवास है एवं इसी कुंडलिनी के अभ्यंत ही मुलचित शक्ति भी मौजूद है। इसी परम एवं दिव्य शक्ति को जगाना एवं उसे नियंत्रणाधिकार में रखना योग का परम लक्ष्य है। यह मूलाधार चक्र मनुष्य शरीर का आधार भी है तथा इसमें पृथ्वी तत्व की प्रधानता है। प्रकृति के नियमानुसार जन्म से लेकर सात वर्ष तक मनुष्य के शरीर में इस शक्ति केंद्र का मुक्त रूप से विकास होता रहता है। सात वर्ष तक बच्चा यदि स्वस्थ्य पोषक तत्व युक्त व्यंजनों से परिपूर्ण रहा तो जीवन भर उसकी स्वास्थ्य की रक्षा होती रहेगी अर्थात रोग प्रतिरोधक क्षमता उच्च गुणवत्ता के होगी। आयुर्वेद शास्त्र में वर्णित है कि तीन तुलसी के पत्ते एक बूंद शहद पीस कर यदि बच्चे को चटा दिया जाए दुग्धाहार से डेढ़ घंटा आगे-पीछे तो बच्चे होनहार, वीर्यवान, मनोबल में सबसे आगे रहेंगें। जो व्यक्ति योग साधना के द्वारा मूलाधार चक्र को जागृत कर लेता है और उसी में समाधिस्त हो जाएगा तो त्रिलोक में विचरण, प्रकट होने एवं प्रकृति के रहस्यों को समझने की सामर्थ्य विकसित हो जाएगा तथा उस व्यक्ति में गध-पध की लेखन शक्ति, वाक कौशल शक्ति और आरोग्यता आदि की प्राप्ति होती है।
दूसरा, लिंग के मूल स्थान में स्थित स्वाधिस्ठान चक्र है। इसमें जल तत्व की प्रधानता है, इसका उपनाम भावना केंद्र भी है जो प्रकृति के नियमानुसार स्वतंत्र रूप से 8 से 14 वर्ष के बीच इस केंद्र का स्वतः विकास होता है। इस दरमियान बच्चे को जैसी सकारात्मक, नकारात्मक भावनाएं भर दी जाए पूरा उम्र वह उसी विचारधारा के इर्द-गिर्द अपना आचरण करता रहेगा तथा उस बच्चे में भरी गई भावनाएं वरदान या अभिशाप हो जाएगा। साधारण शब्दो में इस दौरान बच्चे के मन में यदि भय, क्रूरता, वीरता, शौर्यता जैसा भी इरादा, भावनाएं भर दी जाए वह आगे चल कर वैसा ही होगा।
इसे ध्यानयोग के माध्यम से जागृत करने से भक्ति, आरोग्यता और प्रभुत्व की सिद्धि मिलती है तथा अनसुने अनदेखे शास्त्रों के निचोड़ ज्ञान व्याख्या करने की सामर्थ्य विकसित हो जाती है।
तीसरा शक्ति का केंद्र मणिपुर चक्र है जो नाभी के पास स्थित है। इसमें अग्नि तत्व की प्रधानता है। प्रकृति के नियमानुसार इस केंद्र का विकास 15 से 21 वर्ष के आयु तक होता है। यह बुद्धियोग का समयाकाल होता है इस दौरान जितना बुद्धि विकास के युक्ति है उतना करना चाहिए। 15 से 21 वर्ष के बच्चों को भृकुटि के मध्य में ध्यान केंद्रित कर देवमंत्र या गुरुमंत्र जप ध्यान करने से मणिपुर चक्र जागृत होता है तथा बच्चे आगे चलकर बड़ा बुद्धिमान हो जाते हैं।
ध्यानयोग से मणिपुर चक्र जागृत हो जाने से आरोग्य, धन, ऐश्वर्य एवम जगत के पालन एवं विनाश करने की शक्ति भी मिल सकती है। पाताल सिद्धि, सर्वदु:ख निवारक, मनवांच्छित फल प्राप्ति, और आकस्मिक घटनाओं, काल पर विजय तथा औषधियों के गुण दोष जानने की शक्ति प्राप्त हो जाएगी।
चौथा शक्ति का केंद्र बारह पंखुड़ी वाला अनाहत चक्र है जो हृदयमण्डल में विद्धमान है। इसमें वायु तत्व की प्रधानता है। प्रकृति के नियमानुसार स्वतंत्र रूप से 22 से 28 वर्ष के बीच अनाहत चक्र (हृदय केंद्र) का विकास होता है। इस दौरान हृदय को जितना उदार कोमल स्वाभाविक एवं सम सहज बनाया जा सकता है बाद में व्यक्ति उतना ही ऊपर उठ सकता है। इस दरमियान इन्द्रियों के भोग विलसवादिता, छलिया कपटी का मार्ग दिखाने से त्वरित फायदा तो दिखेगा परंतु बाद में सत्यानाश होगा। कबीर जी अपने शब्दों में कहते हैं-
कबीर आप ठगाइये, और न ठगिये कोय।
आप ठगै सुख, ऊपजै और ठगे दुख होय।।
जो सुख भोगने में दूसरे का शोषण करता है उसका गर्त में गिरने का गड्ढा बढ़ता जाता है। औरों को गुमराह, ठगी एवं सता कर सुखी रहने की कोशिश करता है वह एक दिन प्रारब्धावश अपने गलत कुकर्मो के कारण बड़ा दुख को भोगत है। वैसे देखा जाए तो निरस व्यक्ति ही जगत के रस के पीछे पागल की भांति इधर-उधर घूमता रहता है। यह नीरसता ही तमाम व्यसनों, विषय विकारो की ओर अग्रसरित करता है। यह नीरसता ही पराधीनता, जड़ता, दुर्बलता का कारण है। मर्यादित, सात्विक और धर्मानुकूल भोग योग में बदल सकता है। 22 से 28 वर्ष के आयु में भोग को भोगने की अथवा संसार में जीवन यापन करने में जितना संयमता, संस्कार होगा वह व्यक्ति नैतिकता के दृष्टिकोण से उतना ही ऊंचा हो जाएगा। बड़े-बड़े पदों पर बैठकर अत्यधिक धन संग्रहण, विदेशी बैंकों में जमा पूंजी जिससे नींद चैन भी हराम एवं जनता जनार्दन में जग हसाई और जांच एजेंसियों से सामना भी होना जिससे श्वास, हार्टअटैक जैसी विमारियों को दावत देना और आत्महत्या के बारे में सोंचना, अमल में लाना आदि आदि कुसंस्कार विकसित हो जाते हैं। लोभ, मोह प्रकृति के वास्तविक आयाम नहीं है यह आगंतुक शैतान है जिससे नीरस व्यक्ति मिलकर महानिरस, निरंकुश हो जाता है।
ध्यानयोग से अनाहत चक्र को जो व्यक्ति जागृत करने में सफल हो जाता है उसे अपूर्व ज्ञान, दूरश्रवण, दूरदर्शी दृष्टि, अकास गमन तथा अनिमादिक आदि सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
पांचवा शक्ति का केंद्र सोलह पंखुड़ियों वाला विशुद्धि चक्र है जो कंठ में विद्धमान है तथा इसमें अकास तत्व की प्रधानता है। प्रकृति के नियमानुसार मुक्त रूप से यह 29 वर्ष से 35 वर्ष के उम्र तक स्वतः विकास होता रहता है। इस उम्र के दरमियान श्वास गहरा लेकर धीरे-धीरे छोड़ते हुए सर को अकास की ओर करना है फिर तुरंत नीचे की ओर झुकाना है तथा बिना मुख खोले ॐ की आवाज गुंजन करना है इस यौगिक क्रिया करने से इस शक्ति के केंद्र का विशुद्धि एवं प्रगति तथा विकास होता है।
इसे ध्यानयोग से जागृत करने पर चारो वेदों का लोक विकासमयी रहस्य समझ में आ जाता है। मन, बुद्धि इंद्रियां और प्राण में स्थिरता, संतुलन हो जाएगा। विशुद्धि चक्र जागृत व्यक्ति यदि किसी पर क्रोधित हो जाये तो वहाँ की धरती कम्पायमान होने लगती है। यह सिद्धि त्रेतायुग के रामायण काल में विश्वामित्र ऋषि के पास थी तभी जब राजा दशरथ, राम को उन्हें सौंपने में आनाकानी की तो ऋषि के क्रोध से अयोध्या की धरती डोलने लगी थी। मनुष्य बुढापा की दुर्बलता एवं दुखदायी स्थिति तथा मृत्यपाश की पीड़ा से मुक्त हो सकता है।
छठा आज्ञा चक्र है जो दोनों भावों के बीच ललाट के निचले हिस्से में मौजूद है जिसका एहसास बिना जागृत अवस्था में भी किया जा सकता है। इस बिंदु पर आंखे खोल कर या बंद होने के पश्चात किसी दूसरे वस्तु से हरकत किया जाए तो एक अजीब सी हलचल की सूचना मस्तिष्क को पहुँचती है। इस लिए संत, ऋषि, महात्माओं ने चंदन, अष्टगंध आदि की तिलक करते थें ताकि भागवतमय विचार उत्पन्न किये जा सके। आधुनिक विज्ञान भी इस स्थान में पिनियल ग्रंथि होने का नाम दिया। इस आज्ञा चक्र के ठीक पीछे के कपाल का हिस्सा अनंत ब्रह्मांड में भावनाओं विचारों को प्राप्त करने का रिसिवर का काम करता है एवं आगे का हिसा विचार भावनाएं प्रकट करने का काम आता है ताकि सामने वाला सुने तो उसका मंगल हो। इसके पदम के केवल दो ही पंखुड़ियां हैं और इन दोनो के बीच एक गोलाकार ॐ स्वरूप ज्योति सदा प्रकाशमान होती रहती है। इसके त्रिकोनमण्डल में ब्रह्म, विष्णु, एवं शिव का निवास है। आज्ञा चक्र के ठीक ऊपर इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना इन तीनों नाड़ियों का संगम का स्थान है जो त्रिवेणी द्वीप है। इस स्थान पर वायु क्रिया का समापन हो जाता है और ॐकार तत्व का सुरुआत होता है। इस दिव्यनाद स्थान पर साधक को जिस प्रकाश का अवलोकन होता है वह वास्तव में उसी के जीवात्मा का प्रतिबिंब होता है। ध्यानयोग द्वारा इस केंद्र में दिव्य ज्योति के दर्शन पाने पर योगसिद्धि का परम लाभ प्राप्त होता है और वह योगी मयाजगत एवं प्रकृति के बंधन से मुक्त होकर परमधाम में मुक्ति को पाता है। इस चक्र के सिद्धि से, पूर्व जन्म के पाप भी कट जाते हैं तथा गंधर्व, नाग, असुर, यक्ष, किन्नर, अप्सराएं सभी सेवक हो जाएंगे कोई विध्न नहीं कर सकते। अहंकार, विषाद एवं वासना से मुक्ति मिल जाती है एवं राज योग की भी प्राप्ति होती है।
और सातवाँ शक्ति का केंद्र एक हजार पंखुड़ियों वाला सहस्रार चक्र है जो सर/कपाल में ब्रह्मरंध्र के ऊपर महाशून्य में अवस्थित है। इस सहस्त्रर कर्णिका के बीच एक शक्ति मंडल मौजूद है तथा इसके ठीक बीच में तेज बिन्दु विद्धमान है जिसका प्रकाश करोड़ो सूर्यो के मुकाबले अधिक तेजमान है। यह प्रकाश बिंदु ही अज्ञान के अंधकार को उजियारे में परिवर्तित करने वाला सूर्य स्वरूप परमात्मा है। इसी को भिन्न-भिन्न जाति धर्म सम्प्रदायों के लोग भिन्न-भिन्न नामो से पुकारते हैं पर वास्तव में एक ही प्रकाशमय बिंदु है। उच्च साधना के प्रभाव से इसी प्रकाश बिंदु के दर्शन को ब्रह्मसाक्षात्कार आत्मज्ञान की प्राप्ति कहते हैं। यह परम समाधि विश्रान्तियोग होता है।इसके अलावा भी मनुष्य शरीर में और शुक्ष्म शक्ति के केंद्र मौजूद है पर हमने ऋषि मुनियों के अनुभव एवं अनुसंधान के आधार पर केवल मुख्य शक्ति केंद्रों का व्याख्या संक्षेप में किया है।
प्रारंभिक प्रयासों एवं योग साधना के द्वारा मुखयतः सात दिव्य शक्ति केंद्रों को जागृत कर लेने से मनुष्य में ऐसी-ऐसी दुर्लभकारी, चमत्कारी शक्तियां जागृत हो जाती है जिनके प्रयोग के द्वारा एक स्थान पर बैठकर किसी सुदूर स्थान के वस्तुओं वहाँ के वातावरण को देख, अनुभव कर सकता है तथा वहाँ के आवाजो को स्पष्ट सुन सकता है एवं किसी दूसरे दक्ष योगी से शुक्ष्म शरीर के द्वारा एक पल में दूसरे स्थान पर जाकर साक्षात संपर्क एवं वार्तालाप कर सकता है। इसका मतलब यह नहीं कि पंचमहाभूतों पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि एवं अकास तत्व से निर्मित स्थूल शरीर दिव्य अलौकिक सफर कर सकता है क्यों कि यह प्रकृति के नियमों में बंधा हुआ है और प्रकृति अपने नियमों सिद्धांतो को टूटने नहीं देती और न ही उसके नियमों को यह शक्ति उलंघन कर सकती है। जिनके अंदर पूर्ण योग शक्ति का विकास हो जाता है वह इस स्थूल शरीर को छोड़ कर अपने शुक्ष्म शरीर के द्वारा जहाँ चाहे वहां विचरण कर सकते हैं।
भारत प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों का देश रहा है एवं सृष्टि विस्तार उन्हीं से हुआ है। इन ऋषि मुनियों के वर्षों के तपसाधन, अनुसंधान से जो मनुष्य शरीर के दिव्य शक्तियों के जानकारी मिलती है उसे यदि उसे शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाए तो निःसंदेह अपराध की दर बहुत कम हो जाएगी एवं रोग विमारी से होने वाले अर्थव्यवस्था पिछड़ेपन भी कम होगा तथा अत्यधिक खर्चीले अंग्रेजी दवाओं की नियमित आदत नहीं पड़ेगी। व्यक्ति यदि किसी कारणवश हल्का-फुल्का वीमर हुआ तो सस्ते आयुर्वेदिक औषधियाँ की चूरण-चटनी सदा के लिए ठीक कर देगी।
अतः हम सभी को सुबह स्नान के उपरांत ध्यानयोग में थोड़े समय जरूर लगाने चाहिए तथा शरीर के सुषुप्त सात दिव्य केंद्रों को जगाने के लिए थोड़ी परिश्रम, योग साधना जरूर करना चाहिए।
अभिषेक कुमार
साहित्यकार, समुदायसेवी, प्रकृति प्रेमी व विचारक
श्रेणी:
— आपको यह ब्लॉग पोस्ट भी प्रेरक लग सकता है।
नए ब्लॉग पोस्ट
22-10-2024
हर सवाल का जवाब एक सवाल।
आईए आईए, कह कर नेता जी ने एक गरीब किसान से हाथ मिलाया और बोले, देखिए एक गरीब आदमी से भी मै हाथ मिला लेता हूं। ये एक बड़े नेता की निशानी होती है। आप जैसे फटीचर और गरीब मेरे घर के दरवाजे के भीतर चुनाव के घोषणा के बाद निडर होकर आते हैं, ये मेरी .....
Read More15-10-2024
पेपर बॉय टू मिसाइल मैन
डॉ. ए. पी.जे. अब्दुल कलाम को आज कौन नहीं जानता। ये भारत के राष्ट्रपति रह चुके हैं। और इन्हें लोग मिसाइल मैन भी कहते हैं। इनका जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा। इनके जीवन के बारे में थोड़ा सा प्रकाश डालना चाहूंगी। इनका जन्म 15 अक्टूबर 1931ई. में तमिलनाडु..
Read More11-10-2024
पढ़िये सेंधा नमक की हकीकत...
भारत से कैसे गायब कर दिया गया... आप सोच रहे होंगे की ये सेंधा नमक बनता कैसे है ?? आइये आज हम आपको बताते है कि नमक मुख्यत: कितने प्रकार का होता है। एक होता है समुद्री नमक, दूसरा होता है सेंधा नमक "Rock Salt" सेंधा नमक बनता नहीं है पहले से ही बना बनाया है..
Read More06-10-2024
भोजपुरी के तुलसीदास रामजियावन दास
भोजपुरी भाषा के तुलसीदास कहे जाने वाले रामजियावन दास वावला जी का जीवन परिचय आद्योपांत। खले खले के जाती धरम करम रीति रिवाज बोली भाषा के मिलल जुलल बहुते विचित्रता से भरल बा भारत. भारत जईसन देशवा घर परिवार समाज की खतिर घमंड के बात बा.अईसन माटी ह जेकरे...
Read More07-09-2024
ग्यारह होना
जीवन के अनेक बिंबों को एक ग़ज़ल के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, आशा करता हूँ आपको रचना पसंद आएगी।
Read More