आखिर वेतन दिवस क्यों नहीं मनाया जाए..?

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ब्लॉग प्रेषक: डॉ. अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, प्रकृति प्रेमी व विचारक
प्रेषण दिनांक: 22-02-2023
उम्र: 33
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: +919472351693

आखिर वेतन दिवस क्यों नहीं मनाया जाए..?

आखिर वेतन दिवस क्यों नहीं मनाय जाए..?

© डॉ. अभिषेक कुमार

        पूरे वर्ष के बारहो महीना आये दिन देश दुनियाँ में कोई न कोई दिवस मनाया जाता है। चाहे वह स्मरण दिवस हो, जयंती दिवस हो या कोई अन्य उत्सव का दिवस हो... निश्चित अंतराल पर कोई न कोई दिवस हम जन्म से ही मनाते आये हैं। यह बहुत ही अच्छी बात एवं सुंदर परंपरा है कि उस दिवस के बहाने उससे जुड़े उनकी यादों को स्मरण करते हैं तथा कुछ दिवस पर तो पौराणिक एवं संस्कृति कार्यक्रमों के जरिये हर्षोल्लास से मनाते हैं एवं खुशियां बाटते हैं तथा एक नवीन तरोताजगी, सीख प्रेरणा लेकर जीवन के सफर को आगे बढ़ाते हैं। हमारे कर्म भूमि उत्तर प्रदेश में तो प्रत्येक महीना में निश्चित तिथि को ब्लॉक दिवस और तहसील दिवस मनाया जाता है। इस दिन जनता जनार्दन के समस्याओं को सक्षम अधिकारियों द्वारा सुना जाता है और समाधान किया जाता है।


कुछ ऐसे सरकारी, गैर सरकारी संस्थान है जहाँ के कर्मियों को महीने में तय तिथि को या तय तिथि के पहले वेतन प्राप्ति हो जाता है। पर क्या हमलोगों ने सोचा है कि देश के ऐसे भी एक बहुत बड़ा वर्ग सरकारी, गैर सरकारी, संगठित या निजिगत प्रतिष्ठानों का कर्मी है जो निर्धारित मासिक वेतन के सहारे जीवन नैया खेपने को प्रतिबद्ध है उन्हें समय से मासिक वेतन प्राप्ति का नसीब नहीं होता। ऐसे कर्मियों को जब महीने की वेतन स्वरूप धनराशि प्राप्त होता है तो मन खुशियों के फुलझड़ियों से रंग-बिरंगे रौशन हो जाता है और यह दिन कोई विशेष दिवस के उत्सव से कम नहीं होता..! तो आखिर सार्वजनिक तथा अधिकृत रूप से क्यों नहीं वेतन दिवस मनाया जाए..?

यदि जेब में रुपये न हो और रसोई में खाद्य सामग्री का अभाव हो तो चाहे वह कोई भी दिवस आये भीतर से सुहाता नहीं है और न ही अन्तर्रात्मा से वास्तविक खुशी होती भले ही सबके सामने चेहरे पर मुस्कान हो और अन्य खुशियाँ मना रहे लोगो के साथ झूम लिया जाए। बहुत सारे सरकारी, गैर सरकारी संस्थान/विभाग है जहाँ महीने में समय से वेतन नहीं मिलता अथवा कोई निश्चित दिन नहीं होता कि किस दिन वेतन भत्ते मिलेंगें। कुछ-कुछ विभागों में दो-तीन-चार-छः महीने या वर्षो बाद वेतन प्राप्ति का नसीब वहाँ के नौकरी कर्मियों का होता है। इस महंगाई और पिछड़ी अर्थव्यवस्था के दौर में साधारण पदों पर नौकरी/सेवा देने वाले कर्मचारी/अधिकारी को घर गृहस्थी चलाने के लिए धनार्जन के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं होता, वे सिर्फ नौकरी के ही वेतन भत्ते के भरोषे होते हैं। वेतन समय से महीने में निश्चित तिथि को मिल जाने से व्यक्ति के खर्च एवं रहन-सहन का स्तर उस हिंसाब से स्वचालित होने लगता है और निश्चित समय अंतराल तथा निर्धारित धनराशि प्राप्ति में जीविकोपार्जन के लिए होने वाले व्यव में संतुलन की स्थिति बना रहता है जिससे वह अनावश्यक कर्ज की चंगुल में भी नहीं फंसता और घर-गृहस्थी में तरक्की तथा शांति बना रहता है। वहीं समय से महीने में वेतन न मिलने के कारण अथवा दो-चार-छः महीने या इसके बाद प्राप्ति से वह व्यक्ति अनिश्चितता, वितिय संकट और जीवन के नित्य, नवीन जीविकोपार्जन संबंधी क्रियाकलापों में असंतुलन, असहज की स्थिति को महसूस करता है। वेतन तो एक दिन मिलने हैं परंतु दैनिक उपभोग और उसके सापेक्ष तो न्यूनतम खर्च प्रतिदिन प्रति व्यक्ति कर्मचारी को है ऐसे में वेतन समय से न मिलने पर वह व्यक्ति, कर्मचारी, अधिकारी उधारी, कर्ज के चंगुल में फंसने को वह मजबूर हो जाता है। कारण की पारिवारिक खर्चे हो या बच्चों के स्कूल, ट्यूशन फीस, शादी-विवाह, अन्य कार्यक्रमों में सामाजिक जिम्मेदारी हो या श्रीमती जी की फरमाइश या फिर माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी या नाते-रिश्तेदारों, स्नेहीजनों की ख्वाइस एक नौकरी करने वाले वेतनभोगी से सबकी अपेक्षाएं भिन्न-भिन्न होती है। जो कहीं न कहीं जायज भी है और नैतिक कर्तव्य भी। 

वेतन समय से महीने में न मिलने के कारण नौकरी कर्मी कौन-कौन दुःख तकलीफ का सहन करता है वह वही जनता है। कभी बच्चों की मनपसंद मांग तो कभी पत्नी की सौंदर्य प्रसाधन की वस्तुएं और प्रत्येक कार्यक्रमों आयोजन में प्रतिभाग करने के लिए नई साड़ी, गहने का मांग तो कभी घर परिवार के लिए आवश्यक सामग्रियों की खरीदारी के लिए न जाने कैसे उधार/नगद प्रबंध करता है यह वही जनता है। अल्प वेतन भोगी और समय से वेतन न मिलने के कारण वह एक फुलपैंट शर्ट पहन कर, दिन में एक बार रूखा-सूखा भोजन कर वर्षो बिता देता है पर नित्य नवीन होने वाले खर्चे दायित्यों, जिम्मेदारियों से कैसे भाग सकता है..? पारिवारिक जिम्मेदारियों की खर्च की मीटर रीडिंग तो दैनिक और महीने के हिंसाब से भाग ही रहा है उसे धन की प्रतिपूर्ति से पाटना ही पड़ता है चाहे जिस प्रकार जैसे पाटे। इन्हीं परेशानियों चिंताओं के बीच कई नौकरी कर्मी तो समय से पहले ही बुड्ढे हो जाते हैं उनकी माथे पर चिंताओं की लकीरें स्पष्ट दिखाई पड़ती है। जिस घर में पति-पत्नी दोनों नौकरी में है और दोनों का वेतन अनियमित है तो वहां भी आर्थिक तंगी देखने को मिलता है चूंकि जिसका जितना वेतन वैसे ही रहन-सहन खर्चे और इनकी पूर्ति हेतु धन की नियमित आवश्यकता है। जबकि वेतन अनियमित है तो कर्ज से घर खर्चे चलाओ जब वेतन मिला तो उधार वाले को प्रतिपूर्ति करो ऐसे परिवार जीवन में उन्नति के बजाए संघर्षों में ही जीवन खपा देते हैं।

महान कथाकार प्रेमचंद जी ने कभी कहा था कि वेतन प्राप्ति पूर्णमासी का चांद है जो उसके बाद दिन-प्रतिदिन घटता रहता है। परंतु इस घोर महंगाई के दौर में वेतन फुलझड़ी के पल भर रोशनी के समान है जो अंधेरे में जलते ही अल्प समय के लिए उजियारा कर बुझ जाती है और फिर पुनः अंधेरा छा जाता है।

निचले कर्मियों से जितना कार्य कराने जुनून, जज्बा और जल्दबाजी उच्चाधिकारियों को होता है उतना उनका वेतन भत्ता दिलाने में जल्दबाजी एवं दिलचस्पी नहीं होता। वेतन समय से न मिलने के कारण कर्मियों में नियोक्ता के प्रति असंतोष और रोष भी देखने को मिलता है जिसका प्रभाव वहाँ के कार्य प्रणाली वातावरण पर भी पड़ता है। कोई माने न माने प्रत्येक व्यक्ति, नौकरी कर्मी के कुछ न कुछ दैनिक/मासिक खर्चे हैं जिसका प्रतिपूर्ति परिश्रमिक वेतन स्वरूप निश्चित समय अंतराल पर मिल जाए तो अपनी जीवन की गाड़ी उसके अनुरूप चलाता है यदि समय पर नहीं मिलता है तो अपनी पारिवारिक, व्यक्तिगत खर्चे/जिम्मेदारीयों को निर्वहन हेतु निश्चित चाहने लगता है कि जहाँ कार्य कर रहे वहाँ वेतन प्राप्ति के अलावा और कोई वैध-अवैध, चोरी-चुपके कोई कमाई का साधन हो सकता है क्या..? और फिर क्या... जहाँ जैसी सोच वहां वैसा सृजन फिर कुछ न कुछ इधर-उधर हाँथ-पाँव चला कर धन उगाही करने के मार्ग प्रशस्त हो जाते हैं। जब इस रास्ते अमर्यादित तरीके से धन प्राप्ति का चस्का लग जाता है तो खूब मजा भी आने लगता है तथा मन और बुद्धि लोभ, मोह जैसे शत्रुओं के वशीभूत हो जाते हैं और फिर क्या यहीं से सुरु होता है रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार का शिलशिला..! चूंकि कुछ मायनो में ऊपर से लेकर नीचे तक बड़े से छोटे पदों तक धन की अधिक तृष्णा और निजिगत महत्वकांक्षाओं, लालच ने भी रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को जन्म देता है। परंतु महंगाई वृद्धि के मध्यनजर उचित वेतन भत्ता न मिलना और महीने में नियमित मासिक वेतन पाप्त न होना भी रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचारी आचरण को बढ़ावा देता है।

ऐसी परिस्थितियों में कार्य करने वाले नौकरी कर्मी जिनमें सत्व गुण की प्रधानता है वह रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार के मोह से परे होकर कहीं और बेहतर अन्यत्र स्थान पर नौकरी तलाश में प्रयत्नशील रहते हैं। तमोगुण प्रधानता वाले नौकरी कर्मी चुप मार कर नियति के खेल पर भरोसा कर जैसे-तैसे जो मिल जाये, जैसे मिल जाये, जीवन की नईया बिभिन्न आर्थिक सामाजिक दायित्यों के तूफानों में जूझते हुए खेपते रहते हैं। चूंकि यह भी अन्यत्र स्थान पर कोई अच्छे नियमित पगार वाले नौकरी के तलाश में तो रहते परंतु इस बेरोजगारी के दौर में नौकरी भी मिलना ईश्वर से भेंट के बराबर है। 

वहीं रोजो गुण प्रधानता वाले नौकरी कर्मी अपनी तीव्रता से नीति-अनीति, धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य ताख पर रख के समय से वेतन भत्ते न मिल रहा है तो कोई बात नहीं जो कार्य स्थल/क्षेत्र है वहां उचित-अनुचित धनार्जन के साधन को सुगम बना लेते हैं कारण की उनके पास भी स्वयं और पारिवारिक खर्चे की जिम्मेदारियों का बोझ होता है।

प्रत्येक ऐसे विभाग में अलग से लेखा विभाग होता है पर वह कर्मचारियों के वेतन भत्ते नियमित देने में विफल क्यों है..? यह एक गंभीर सवाल है..? सरकारी गैर सरकारी संस्थानों नियोक्ताओं को इस मामले को गंभीरता से विचार करना चाहिए और प्रत्येक कार्यालयों में मानव संसाधन तथा वित्त विभाग को दुरुस्त करना चाहिए। समय-समय पर महंगाई वृद्धि का आकलन, महंगाई के सापेक्ष वेतन-भत्ते में बढ़ोतरी का प्रावधान सुनिश्चित करना चाहिये तथा कर्मचारियों का वेतन भत्ते में कोई किंतु-परंतु न हो उनके कार्यो के एवज में निर्धारित परिश्रमिक का भुगतान महीने में एक दिवस घोषित कर उस दिन या उससे पहले हर हाल में भुगतान कर दिया जाए तो मैं समझता हूं वेतन की अनिश्चितता में अधमुये हुए कर्मचारियों गृहस्थी में संजीवनी का संचार हो जाएगा तथा कार्यों में गुणवत्ता, उत्साह एवं भ्रष्टाचार भी कम होगा।


    अतः देश में आए दिन जैसे अन्य दिवस के उत्सव मनाए जाते हैं वैसे ही महीने में एक दिन वेतन दिवस भी मनाया जाए तो निःसंदेह नौकरी कर्मी वर्ग और नियोक्ता वर्ग दोनों का भला, कल्याण है और आत्मिक आनंद की उच्चतम पराकाष्ठा भी।

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राष्ट्र लेखक व भारत साहित्य रत्न उपाधि से अलंकृत

डॉ. अभिषेक कुमार

साहित्यकार, समुदायसेवी, प्रकृति प्रेमी व विचारक

ब्लॉक मिशन प्रबंधक-कौशल एवं रोजगार/नॉन फार्म

UPSRLM, ठेकमा, आजमगढ़

ग्राम्य विकास विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार

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