कविता/दोहा

       12-06-2022

गर्मी

चिलचिलाती, चिपचिपाती गर्मी का रौब हर साल बढ़ रहा है, आमजन का जीवन मुश्किल हो रहा है, क्या कहोगे दोस्तों सितम ये क्यों बढ़ रहा है? आधुनिकता का आवरण ओढ़ जो लिया हमने कंक्रीट के जंगलों को जीवन मान लिया हमने, बड़ी बेहयाई से पेड़ काट रहे हैं धरती की

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       08-06-2022

कवि हूँ कविता लिखता हूँ

हाँ ! मैं कवि हूँ कविता लिखता हूँ, सत्य से दो चार हो शब्दों से लड़ता झगड़ता हूँ, मन में जो भाव उठे उसे कागज पर उतार देता हूँ। खुद से लेकर आप तक पड़ोसियों से लेकर संसार तक सरहदों की कठिनाईयों से लेकर आकाश की ऊ

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       31-05-2022

एक साया आया

एक साया आया *************** मन में बेचैनी संग अनचाहा डर समाया था, उलझनों का फैसला मकड़जाल जाने क्यों समझ से बाहर था। नींद आँखों से कोसों दूर थी, जैसे नींद और आँखो की न कोई प्रीति थी। कैसे भी चैन नहीं मिल रहा था बेचैनी से बचने के चक्कर में मैं बार बार बा..

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       31-05-2022

युवता

उठो युवक, नींद में से उठो। आप की हात मे देश का भविष्य है। लक्ष की ओर चलते रहो। न रूखो, न डरो, न जुखो बस आगे चलते रहो। आलसी और बेपरवाह मत बनो। समय को वृदा न करो। परिश्रम करो, विजयी पावो। स्वार्थ, क्रोध को छोड़ो। देश के लिए काम करो। पैसों...

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       31-05-2022

भ्रूण हत्या

भ्रूण हत्या एक ऐसा विषय है , जो बहुत मार्मिक है कई बार न चाहते हुए भी करवाना पड़ता है । परंतु इसका दोष फिर करवाने वाले को पीड़ा जरूर देता है। वह नन्नी कोमल सी कली जिस के एहसास को ह्रदय महसूस करके ही बहुत रोया, मार दिया जिसे जन्म से पहले हाय पाप का बीज

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       24-05-2022

दिल दिमाग़ से मुख्तलिफ

हमने देखा है दिल को ठोकरें खाते हुये, क्योंकि दिल ज़रा दिमाग़ से मुख्तलिफ होता है। दिमाग सोंच समझ कर कदम बढ़ाता है, पर दिल तो किसी का एक नहीं सुनता। और अगर इश्क़ हो जाये फिर तो पूछो ही मत, ख्वाबों के पीछे दिल पागल सा फिरता है। कभी-कभी इश्क़ में लोग दिल की

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       23-05-2022

उम्मीद

ये 'उम्मीद ' दिए की लौ नहीं कि हवा के झोंके से बुझ जाएगी ये वो किरण है जो पत्तों पर बिखरी ओस को भी हीरे सा चमकाएगी एक दिन सावन की बूंदे तेरे मन को भी भीगाएगी यह जो धूल चढ़ी है हवाओं में पहली फुहार में ही बह जाएगी अपनी आत्मा में अपने...

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       23-05-2022

दृष्टिकोण

आपका नज़रिया सही तभी हो सकता हैं जब आपकी सोच सही हो, कोई भी दृष्टिकोण हो उस पर आपकी पैनी नज़र और जहन की परख होनी चाहिये आखिर उसमें कितनी मौलिकता हैं क्योंकि कभी-कभी किसी एक मान्यता के इर्दगिर्द ही घूमती हैं धारणायें जिससे हमें सार्थक परिणाम नहीं मिलते और...

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       21-05-2022

सनातन संस्कृति

समय के साथ हम भी कितने सयाने हो गए हैं, वेद पुराण गीता उपनिषद घोलकर हम पी गए हैं। भूल गए संस्कृति सभ्यता भूल गए सब लोकाचार भूल पुरातनपंथी धारा भूल गए सब शिष्टाचार। भूल गए सभ्यता संस्कृति भूल गए करना सम्मान, भूल रहे माँ बाप को हम तनिक नहीं हो रहा भान।....

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       19-05-2022

साहित्यकार मनजीत कौर जी का जीवन परिचय

- 1989 में अर्थशास्त्र एम. ए. - 1993 में हिन्दी एम. ए . - 2000 में बी. एड. - 2011 में M.S. in Counseling and Psychotherapy - 1990 से अध्यापन कार्य - 4 बेस्ट टीचर अवार्ड - काउंसिलिंग से दूसरों का जीवन बेहतर बनाने की कोशिश - सेवा गुरमुखी क्लास में

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       17-05-2022

अरे मनुष्य जागो

सोचो, कहा है। आप आगे या पीछे आप आगे समझकर दस गुणा पीछे जा रहे हो। अरे मनुष्य सोचो। कहा हो आप। अरे। क्या कर रहे हो आप न्याय और ज्ञान को बेच रहे हो। अन्याय और अज्ञान को खरीद रहे हो। धर्म को भूल कर अधर्म को अपना रहे हो। अरे। मनुष्य

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       17-05-2022

ये,रिश्ते रूह के

मन खुद ब खुद,बेपनाह मोहब्बत नवाजता हैं अपने अजीजो को मिटता हैं हर अदा पर अपने, प्यारों और दुलारोंं की जां सी छिड़कता बेशुमार प्यार,लगाव लूटाने वालों पर एक,अपने लहू के कतरे का अंश समझता हैं अपनी दुनियां के बाश

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       16-05-2022

ऐसा क्यों है

एक टीस मन को सदा कचोटती है, बेचैन करती चुभती है शूल सी। नहीं पता ऐसा क्यों है? न कोई रिश्ता, न कोई संबंध मान लीजिए बस तो है जैसे हो कोई अनुबंध लगता जैसे पूर्व जन्म का हमारे बीच कोई तो है संबंध। क्योंकि ऐसी बेचैनी, ऐसी चिंता यूं तो ही नहीं हो सकती, न च...

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       16-05-2022

देहदान कीजिए

आइए! इस नश्वर शरीर का अंतिम उपयोग करते हैं, नेत्रदान,देहदान करते हैं। इस संसार,समाज ने हमें क्या कुछ नहीं दिया, तो हम भी समाज को कुछ देते हैं, निष्प्राण शरीर का कुछ उपयोग करते हैं। जीवन में अच्छा बुरा जो भी किया कुछ फर्क नहीं पड़ता, कम से कम जीते जी ही...

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       16-05-2022

माँ

मै अपना कविता के द्वारा समाज की सोच बदल सके। समाज सत्य,धर्म,अहिंसा, सभ्यता और संस्कार के मार्ग में चल सके। एक दिन का प्यार नही है माँ हर पल हर दिन पूज्यनीय है माँ। वर्ष में मात्र एक दिन मां के लिए यह पाश्चात्य परंपरा नहीं तो क्या जिस मां की..

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       15-05-2022

अनुभव

यह जीवन चक्र हमेशा कुछ न कुछ सिखाता रहता है जरूरत है सिर्फ उसे सीखने की और एक नए अनुभव को पाने की। अनुभव ******** जीवन जीना चाहता हूं मैं, हर लमहों को खुलकर जीना चाहता हूं मैं, दुखों का पहाड़ मुझपर नज़र गड़ाये बैठा है,,,, मुझपर ढहनें को तत्पर,,,,,

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       12-05-2022

मेरे बचपन की रंगीन तस्वीरें

माँ की ममता मां का प्यार और मां का दुलार बालक के बचपन का वह एहसास है जिसे वह जीवन के प्रत्येक अवस्था मैं जीवंत तस्वीर के रूप में जीता है। बचपन था मेरा ऐसा, आज लगता है रंगीन सपनों जैसा, बेलगाम स्वतंत्र राजकुंवर था मैं, दुलारा था मैं सभी का, जो चाहूँ मिल

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       11-05-2022

मैं सोंचता हूँ

मैं सोंचता हूँ?,,, ठहरा रहा क्यों मीरा दिल कभी तो हद से गुज़र जाऊँ जो मिरे इस दिल में है कह न सका तुमसे कह दूँ आर या फिर पार होगा मोहब्बत के दरिया में उतर जाऊँ बीते लम्हों की वो हसीन दास्ताँ याद करके उन मीठी सी प्यारी यादों में बहक जाऊँ...

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       09-05-2022

मातृदिवस की सार्थकता

मातृदिवस की सार्थकता आइना हमें दिखाती है सोशल मीडिया में मिस यू माय और आई लव यू माँ की जैसे बाढ़ सी आ जाती है, तो वृद्धाश्रमों में माँओं की निस्तेज आँखें हमें मुँह चिढ़ाती हैं, मातृदिवस की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह लगाती हैं। नौ महीने जिसके...

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       06-05-2022

मेरी मां

अमिट प्रेम की पीयूष निर्झर क्षमा दया की सरिता हो । गीत ग़ज़ल चौपाई तुम हो मेरे मन की कविता हो ।। ऋद्धि सिद्धि तुम आदिशक्ति हो ज्ञानदायिनी मां सरस्वती हो । रणचंडी तुम समर क्षेत्र में रिपुंजय मां काली हो।।

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       05-05-2022

लम्हें खुशी के

ढूंढता हूं लम्हें अक्सर, मैं! वो, जिसमें समाई मेरी दिल की हैं थोड़ी सी खुशी पढ़ता भी हूं,सुनता भी वाकई,मेरा दिल चाहता क्या हैं ।। गुजरता हूं जब भी, प्रकृति के साए से होकर । थोड़ा,एकांत में होकर खोजता हूं अपनी भीतर की हर खुशी । ये, लताएं....

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       01-05-2022

मजदूर दिवस

आज एक मई मजदूर दिवस है। आज बड़े बड़े खोखले वादे होंगे मजदूरों के ज़ख्मों पर नमक छिड़के जायेंगे मजदूरों के मजदूर होने और मजबूरियां ही उनकी नियत का अहसास कराये जायेंगे। कल से फिर मजदूरों के जज़्बातों उनके दुःख दर्द, परेशानियां किसी को नजर नहीं आयेंगे मजदूर

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       30-04-2022

संघर्ष की कहानी मेरी ज़ुबानी

जन्म से लेकर मरण के चक्र दौरान करती हैं आत्मा का पुंज भी संघर्ष अनेक । एक,नवीन जीवन में प्रवेश कर आत्मा पाती हैं नई काया नए बंधन,नए नाते और नए संघर्ष के ढेर सारे आलम ।। जन्म से ही हुजूर! खुल जाते हैं संघर्ष के खाते कर्म और भाग्य के अधिकोष में...

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       26-04-2022

जब तक है जिंदगी

जिंदगी जब तक है गतिमान रहती है, न ठहरती है,न विश्राम करती है। सुख दुख ,ऊँच नीच की गवाह बनती है। जिंदगी के गतिशीलन में राजा हो या रंक सब एक जैसे ही हैं, छोटे हों या बड़े किसी से भेद नहीं है। जन्म से शुरू जिंदगी मौत तक का सफर तय करती है जब तक चलती है...

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       23-04-2022

मन के तारों की शक्ति

मन के भावों की स्वीकार्यता से भागना आसान नहीं होता, आपके चाहने न चाहने से पीछा छुड़ाना और भी मुश्किल होता। हम चाहते भी नहीं पर उन भावों में उलझकर रह जाते हैं कुछ अच्छे तो कुछ तीखे अनुभव भी पाते हैं कभी हंसते मुस्कुराते हैं

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