पर्यावरण संरक्षण

घटते जीवांश से खेतों को खतरा।

जैसे कि कृषि विकास दर में स्थिरता की खबरें आ रहीं हैं। यह चिन्ता का विषय है। तमाम आधुनिक तकनीक व उर्वरकों के प्रयोग के बावजूद यह स्थिरता विज्ञान जगत को नये सिरे से सोचने के लिए बाध्य कर रही है। अभी तक हमारी नीतियां तेज गति से बढ़ती जनसंख्या को भोजन देने..

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ये जंगल तुम कितना खूबसूरत हो...

यह कविता जंगल की सुंदरता और प्रकृति के प्रति प्रेम को दर्शाती है। कवि जंगल की खूबसूरती से मंत्रमुग्ध है और उसके साथ एक हो जाना चाहता है। यह कविता प्रकृति के प्रति एक सुंदर श्रद्धांजलि है। यह हमें याद दिलाती है कि हमें प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना चाहि..

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विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस पर विशेष

पर्यावरण के क्षेत्र में बहुत अच्छा छोटा सा लेख आपके साथ सांझा कर रहा हूं अच्छा लगे तो जरूर रिप्लाई करें.. आओ मिलकर बनाएं प्रदूषण मुक्त भारत प्रिय सर्व समाज बंधुओ वर्तमान में संपूर्ण मनुष्य जाति पर्यावरण के बढ़ते असंतुलन से ग्रस्त है ईधर तेजी से आबादी..

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आम के पेड़ो की व्यथा-कथा

पूरे भारत वर्ष के ग्रामीण अंचलों से लेकर शहरों तक आम के पेड़ देखने को मिल जाएंगे। जीवनोपयोगी, आध्यात्मिक, पर्यावरण, स्वास्थ्य एवं पोषण के दृष्टिकोण से आम के पेड़ बहुत ही महत्वपूर्ण है। साथ ही साथ आम को राष्ट्रीय फल होने का गौरव भी प्राप्त है। ग्रामीण इ...

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वृक्षं शरणं गच्छामि

ढलती उम्र में जाग उठी सुषुप्त इच्छाएँ उपासना के लिए पर,कौन-सा स्थल सुरक्षित और सुवासित है जहाँ, बैठकर निर्भीक और निश्छल उपासना कर सकूँ अगर मंदिर जाता हूँ, तो रहमान से डरूँगा अगर मस्ज़िद जाता हूँ, तो राम से डरूँगा और यही डर गिरजा-गरूद्वारा..

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दीवाली की विभीषिका

दीपोत्सव की अलौकिक खुशियों में घर आंगन रौशन कर दिए । हंसी, खुशी, उत्साह, साथ, संग जन जन को विह्वल कर दिए ।। माँ लक्ष्मी की पूजा की दीपों से सुंदर लाल सजाकर । बांटी एक-दूजे में खुशियां स्वादिष्ट मिष्ठान बांटकर ।। विह्वल बच्चे नर-नारी थे...

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🌾 उपज खोती धरती...🌾

..बोया पेड़ बबूल का..आम कहां से होय.. इस लोकोक्ति को,चरितार्थ करती है,आज की परिस्थिति.. आइए..आज चर्चा करते हैं, एक ऐसी ही परिस्थिति की,जिस का विषय है.."उपज खोती धरती.." आज धरती की उर्वरता खोने के कई कारण हैं,परंतु उसकी मुख्य जड़,

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प्राण वायु के ही प्राण संकट में

शहर में गर्मी बहुत भीषण हो रही थी, चिप-चिपी गर्मी तन-बदन को पसीने से तरबदर कर रहे थें। पंखे की गर्म हवा सुहाती नहीं तथा कूलर का प्रभाव तो कब का फेल हो चुके थें उनकी हवावों में ठंढक का एहसास नहीं हो रहा था बस घुटन ही घुटन चारो तरफ व्याप्त था। AC सब जगह...

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एहसासों के रंग कुदरत के संग

।। धरा की हैं यही पुकार बढ़ते ताप से मुझे बचा लो बस,सब आप ।। जंगल,वन और उपवन हो रहे वीरान निस्ते नाबूत हो रही इनकी पहचान अस्तित्व के इनके हमें बचाना हैं पेड़ों की संख्या ,हो रही जो कम उसे,घटने से बचाना हैं ।। अरे,हुजूर! कुदरत को हरा भरा रख

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पर्यावरण

विज्ञान के नाम से अज्ञान न बनो। परि आवरणों को सुरक्ष रखो। वनों को मत काटो, वृक्षारोपण करो, रासायनोका उपयोग मत करो। जल और वायु को प्रदूषण मत करो। अज्ञान से नही ज्ञान से सोचो। आज नही तो कल नही। प्रदूषण से पृथ्वी को बचावो। जागो। पेड-पौधे ल...

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प्रकृति का दोहन

मानव के क्रियाकलापों से बिखर रहा प्रकृति का संतुलन । बिंध रही धरती की छाती मनुष्य कर रहा इसका दोहन ।। चित्कार कर रही धरती कुपित हो, मचा रही तांडव । दरक रहा पहाड़ों का सीना मिट रहा नदियों का उद्भव ।। जल-जंगल-जमीन से हमारा सदियों का बंधन है ।

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पृथ्वी दिवस

धरती का दिल रंगा कुदरत ने हरियाली के रंग से । पेड़ पौधे,वृक्ष लताएं पशु और पंक्षी हैं इसकी गोद में पलती बढ़ती कई पीढ़ियों की अनगिनत कलाए ।। नदियां,झरना का कल कल करता पानी कहता हैं ऐ,मानव ! मुझसे ही हैं तेरी ज़िंदगी की रवानी ।। कली का फूल बनना और

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जंगल और पर्वत का संबंध

जंगल और पर्वत के दरमियान बसी हैं कुदरत की प्रेम निशानियां ।। # जंगल जंगल घूमता हूं मैं, ढूंढने को प्रेम की निशानियां । और पर्वत पर्वत चढ़ के जाता हूं मैं ! खोजने कुछ अंश मोहब्बत के जो, नामे वफ़ा हैं कुदरत के ।। ये,खूबसूरत से पर्वत और पहाड़ की कहान

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जंगल हैं शुद्ध वायु का मुख्य श्रोत

जंगल स्वतः हैं ऑक्सीजन या शुद्ध वायु का श्रोत ।। # प्रकृति में हर असंभव को संभव बनाने की क्षमता हैं । जो, तकनीकी या विज्ञान के द्वारा संभव नहीं प्रकृति, उसकी भी भरपाई कर देती हैं । पेड़ पौधों में ऑक्सीजन या शुद्ध वायु प्रदान करने की असीम क्षमता ह

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मधुरिम सा संबंध नदी और जंगल का

बड़ा मधुरिम सा संबंध नदियां और जंगल का ।। # जल स्रोत जब नदी का चूमता हैं किनारा जंगल का आवेग के साथ ।। धरती होती हैं गदगद और करती भीतर ही भीतर कंपन हिलोरे मारता हैं नदी का अस्तित्व जब जब, हलचल सी होती हैं धरती के सीने में ।। खुशी की लहर जल की

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बेजान में भी जान हैं पनपती

गुजरा मैं सहसा एक डगर से इत्तेफाक से,मिल बैठा इस बेबस से । मैं! ठहरा, रुका जरा सा । कुछ पल वास्ते,बैठा उसके कुछ करीब सा ।। एक बेजुबां का जाना हाले दिल और अहसास कर गुजरा उसके दर्द से आखिर में,

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चिपको आंदोलन

विद्रोह नही विरोधियों के खिलाफ ये,हैं माध्यम जन चेतना को जगाने का पर्यावरण संरक्षण दृष्टिकोण से ।। जुनून रग रग में भरकर वो सोते हैं, जगते हैं और राह पर निकलते हैं

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जल : जीवन का अवलंबन

जड़ चेतन का पोषक जल है । जल बिनु सूना सारा जग है जल ही जीवन का द्योतक है ।। हिम शिखरों पर हिम खंड रुप में

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जिन चीजों से वायु प्रदूषण हो रहा है हमें उन चीजों को अपनी दैनिक दिनचर्या से हटाना होगा..

जलवायु परिवर्तन के कारण हरितगृह (ग्रीनहाउस) प्रभाव और वैश्विक ताप में वृद्धि, ओजोन...

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