गरीबों का दर्द कौन समझे
आधा नंगा बदन में, बदहोश जो होता रहा। सड़क पर होकर खड़ा,
Read Moreगाजर के बहाने किसान विमर्श
किसान और गाजर को उपहास के नजर से देखा जाता है लोग कहते है- "का हो काका... गाजर कमाएल बड़? " का चाची... गाजर बेचत बड़.... हा हा हा हा हा "! इतना ही नही किसान तो तब सर्मसार हो जाता है जब उसे खालिस्तानी, पाकिस्तानी और आतंकवादी जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता है तो ऐसा लगता है जैसे कानों में शीसा पिघलाकर डाला जा रहा हो। मेरे मित्रों! ये साक्षात अन्नपूर्णा है, अन्नदाता है, ऐ सम्मान के पात्र है।
Read Moreइस आसमां में उड़ने की अब बारी हमारी है
इस आसमां में उड़ने की अब बारी हमारी है। औरों से क्या लड़ना अभी तो खुद से लड़ने की बारी है। इन परिंदों से कहेंगे कि हमें अपना दोस्त बना लें,
Read Moreप्रेम रंग से हृदय रंगो
हमारे तीज त्योहार हमेशा ही हमें आपसी एकता, भाईचारे के संदेश देते आ रहे हैं।आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम भले ही कहाँ से कहाँ पहुंच गये...
Read Moreमेला बना झमेला।
अरे केतना अलता होंठ में घसोगी, फेगू चचा का एतना कहना था कि कबूतरी चाची शुरू हो गई। का जी आपको आलता आऊ लिपिस्टिक में फर्क नहीं बुझाता है, खाली लड़े के ओर खोजत रहते हैं। आइएगा मेला से त सब गरमी उतार देंगे। फ़ेगु चचा के भक मार गया। लड़ाई की रणभेदी बज चुकी थी।
Read Moreयुद्ध के बाद सन्नाटा
युद्ध कोई भी है उसकी परिणति एक ही होती है, जहां जीवन महकता था...
Read Moreचाहे जीवन की राहे हो या सफर की, दोनो में एक ही समानता...
यदि सफर की बात की जाए तो ये पूरी सृष्टि, अनंतकोटि ब्रह्मांड ही सफर कर रहा है। यहाँ कुछ स्थिर नहीं है सभी अपने-अपने गति के नियमानुसार गतिशील है। सूर्य, चंद्र, ग्रह एवं...
Read Moreभावों संग होली के रंग
होली रंगों का त्योहार है आपस में मिलने जुलने शिकवा शिकायतें मिटाने का...
Read Moreलोकतंत्र के मौन मार्गदर्शक
मनीष कुमार तिवारी,
विचारधारा को फैलने के लिए यह जरूरी है कि विचारों के भांग पूरे कुएं में घोल दिए जाएं...
विधानसभा चुनाव: समाजवादी पार्टी के हार मायने
राजनीतिक ऊंट किस करवट बैठेगा, यह अनुमान लगाना मुश्किल होता है लेकिन अगर ऊंट का रखवाला सही समय पर और सही ढंग से लगाम कस कर ऊंट पर अपनी पकड़ बनाए रखे...
Read Moreबस में यात्रा, बस हो गया।
डाल्टनगंज बस स्टैंड में चहल पहल - रांची रांची, सासाराम औरंगाबाद, जपला छतरपुर, हरिहरगंज, गढ़वा अंबिकापुर की आवाज मानो सुपर सोनिक मिसाइल की भांति कान को फाड़े जा रही थी लेकिन औरंगाबाद की आवाज लता मंगेशकर के गानों की भांति कान में रस घोल रही थी, कारण था - सजनी से मिलने जो जाना था। औरंगाबाद शब्द मानो ऐसा लग रहा था जैसे लता जी गा रही हों - "आ लौट के आज मेरे मीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं"।
Read Moreनाम करूँगी रौशन मेरे पापा
बेटी हूँ तो क्या हुआ किसी का दिल नहीं दुखाना आता। नहीं किसी पर बोझ बनूँगी...
Read Moreविधा, ज्ञान और शिक्षा एक दूसरे के पूरक एवं भिन्न: अभिषेक कुमार
विधा, ज्ञान और शिक्षा ये तीनो सामान्य दृष्टिकोण से एक ही प्रतीत होते हैं परंतु वास्तव में ये तीनों एक दूसरे के दिव्यात्मक पूरक एवं भिन्न है...
Read Moreउनसे कह दो गद्दार नहीं हूँ
हिंदुस्तान के हर गाँव से शहर तक पहचान है मेरी किसी शोहरत् किसी ओहदे का तलबग़ार नहीं हूँ...
Read Moreमैं हिंदुस्तान का हूँ
नहीं कोई भी अपना है, किसी की बात क्या है। इस भीड़ भरी दुनियाँ...
Read Moreजिन चीजों से वायु प्रदूषण हो रहा है हमें उन चीजों को अपनी दैनिक दिनचर्या से हटाना होगा..
जलवायु परिवर्तन के कारण हरितगृह (ग्रीनहाउस) प्रभाव और वैश्विक ताप में वृद्धि, ओजोन...
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