काव्य
वे दिन भी क्या दिन थे
वे दिन भी क्या दिन थे, वे दिन भी क्या दिन थे। जब हमें कोई जिम्मेदारी न थी, जब हमें कोई परेशानी न थी, जब वक्त कटता था हंसने - हँसाने में, जब वक्त कटता था सुननें -सुनाने में, वे दिन भी क्या दिन थे। जब सुबह चिड़ियों की आवाजें कानों में गूँजती थी, जब शा..
Read Moreअभिमान तिरंगा है।
तिरंगे की शान में अर्पित श्रद्धा सुमन अभिमान तिरंगा है हर घर तिरंगा है उत्तर में हिमालय है दक्षिण में सागर है पश्चिम के रेतीले मैदान पूरब हरियाली है ब्रम्हपुत्रा, सरयू ,कावेरी यमुना और गंगा है अभिमान तिरंगा ............ केसरिया वीरों का है..
Read Moreगीत नया गाता हूँ
काल समय समाज युग राष्ट्र के अतीत के परिपेक्ष्य में वर्तमान में उत्कृष्ट भविष्य के लिए आमंत्रण आवाहनं करती काव्य रचना । निश्चय निश्चित निष्छल काल दौर स्वीकारता कर्तव्य परम्परा के दायरे में सिमटना नही चाहता युग के साथ स्वछंद दौर को पुकारता काल कि स्वछंद..
Read Moreहम तुम्हारे हुए
तुम हमारे हुए, कितने प्यारे हुए। इक मुलाक़ात में, हम तुम्हारे हुए।। इश्क़ आगाज़ है, चांदनी रात है, जगमगाता ये तारों की बारात है। हौले-हौले मोहब्बत की शुरुआत है, आशिकाना सनम तेरा अंदाज़ है। दोनों इक दूजे के अब सहारे हुए। इक मुलाक़ात...
Read Moreदिल कृष्ण कृष्ण हो गया
मेरे दिल की बातों को कविता के माध्यम से बताया है। क्या कहता है दिल ? सुनो इसकी बाते सुनाए । दिल हो गया है कृष्ण कृष्ण, मन वृंदावन मे बस जाए । क्या कहता है दिल ? सुनो इसकी बाते सुनाए । दिल हो गया है राम राम
Read Moreतुम मजदूर हो
तुम मजदूर हो ।। मन विकल, काया शिथिल आंखें उम्मीदों से भरी । दो वक्त की रोटी मिले दुविधा यही सबसे बड़ी ।। बन प्रजा सेवक सदा,निभाते सदा दस्तूर हो । तुम मजदूर हो ।। दर-बदर हो तुम भटकते कुछ कार्य की तलाश में । कर्म से जो धन मिले जीवन कटे उल्ल..
Read Moreबधाईयां रामलला जन्में हैं अयोध्या
रामलला जन्मे हैं अयोध्या धाम ।। ढोल ताशे मृदंग ने दी हैं अपनी थाप और वीना ने भी छेड़ी हैं अपनी तान रामलला हैं जो जन्में, कायनात भी झूमकर द्वार लला के बधाईयां देनी हज़ार आज हैं आई ।। कौशल्या दशरथ नंदन चराचर जगत के स्वामी रघुवर के श्री चरणों.
Read Moreकोरी कल्पना
एक कवि की कोरी कल्पना को पूरा सा करती हैं एक कविता ।। मन,मस्तिष्क और कलम के खालीपन को भावों से सुसज्जित सा करती हैं एक कविता ।। जज़्बात बिखरते हैं जब कागज़ की फर्श पर स्याही के रंग हो अक्षर अक्षर संग मोतियों की माला जैसी पिरों सा जाती हैं एक..
Read Moreहाय कैसी किस्मत!
जन्म से बुढ़ापे तक एक औरत के राजकुमारी से भिखारि होने तक दशा को कविता के माध्यम से बताया गया है। जनमी तो वो भी माँ की कोख से थी पिता की गोद उसका राज सिंहासन था भाई की राजकुमारी थी वो बड़ी बहनो का सर पर स्नेहिल आचल था बड़ी दुलारी थी सबकी प्यारी थी एक प..
Read Moreनव वर्ष का सवेरा
नये साल पर कविता फूलों सा कलियों सा मन मुस्करायें भौंरों के गीतों सा हम गुनगुनायें धरती गगन गूंजें चिड़ियों का कलरव आओ मन की माला में हम गूथ जायें मोहक मनोहर लगे दुनिया प्यारा | नये साल का आया.............
Read Moreअंग्रेजी नव वर्ष क्यों मनाएं.....।।
फूलों सा कलियों सा मन मुस्करायें भौंरों के गीतों सा हम गुनगुनायें धरती गगन गूंजें चिड़ियों का कलरव आओ मन की माला में हम गूथ जायें मोहक मनोहर लगे दुनिया प्यारा | नये साल का आया पावन सवेरा || अम्बर..............
Read Moreनूतन वर्षाभिनंदन
नव उमंग नव खुशी मिलेजी, वन को नव आयाम मिले। सुख समृद्धि यश बल वैभव से, परिपूरित सम्मान मिले।। बीत गया जो वर्ष भूलकरन, वयुग का सत्कार करो । दीन-दुखी-निर्धन-निर्बल का, बन सेवक उद्धार करो ।। धरा गगन झूमे खुशियों से, कुछ ऐसा संकल्प करो ! निर्भय......
Read Moreतेरे घर की खिड़कियां
अब नहीं दिखती मेरे छत से, तेरे घर की खिड़कियां। जब से गली में ऊंचे-ऊंचे, मकान बन गए ।। खुशबुओं से महक उठती थी, राहों की जो फिज़ा ।। बहती वे हवाएं भी, तूफां में बदल गए ।। मिलते थे जिस गली के, नुक्कड़ पर हम कभी हमने सुना है उस जगह, चाय की दुकान खुल गए...
Read Moreतुम्हारी डीपी/DP
ढलती सुहानी शाम में जल उठी घरों में शमां । धवल-उज्ज्वल रोशनी से, निखर उठा आसमां ।। सिमट रही रवि किरणें, हो रहीं ओझल बन बावरी । श्वेता-श्याम घूंघट काढ़े, अवतरित हो रही विभावरी ।। बादलों की ओट से झांकता चाँद, बिखेर रहा जग में प्रकाश । मन हरती धवल चांद...
Read Moreमन की जीत - मन की हार
हार - जीत मन अंश जीवन का क्यों निराश करते मन को । लक्ष्य और आएंगे पथ में लो संकल्प, भूलो ग़म को ।। फूलों सा कोमल जीवन है पर कांटे भी हैं राहों में । निकल गया जो बचकर इससे खुशियां सिमटी बांहों में ।। बसंत ऋतु की सुखद प्रतिक्षा पतझड़ भी कर...
Read Moreचंदृबरदाई को पढ़ लेना......
रचनाकार क्या होता है...हम जो one mane army काॅसेप्ट कहते है उसे परम आदरणीय चन्दृबरदाई जी नें कर के दिखाया है ..कवि मित्रों... कोरा कागज क्या व्यक्त करता है, लेखनी ही इतिहास लिखती है । बीरता और वेदना अभिव्यक्त कर.. सत्ता ओर शाशन से लड़ती है ।। कलम...
Read Moreसफलता चूमेगी कदम
जीवन के शिखर बिंदु तक पहुंचने के लिए त्याग,तपस्या और कठिन श्रम की आवश्यकता पड़ती हैं ।। बिना इनके,बड़े से बड़ा लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता हैं निरंतर प्रगति के लिए,जरूरी हैं ।। ईमानदारी,सत्यता और कर्मठता से कर्म किए जाएं जीवन पथ पर तभी,उज्ज्वल भवि..
Read Moreसाहित्य की ताकत
संस्कृति सभ्यता का उपवन साहित्य ज्ञान की झांकी है। प्रगतिशील होता वह देश साहित्य जहां की साखी है ।। नर जीवन अधम अगोचर है साहित्य बिना संज्ञान कहां बंधुत्व प्रेम वात्सल्य निहित साहित्य जहां है, स्वर्ग वहां ।। दिशा मोड़ देता साहित्य उद्दंड सम..
Read More